गृहस्थ जीवन में कदम कदम पर हिंसा है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

गृहस्थ जीवन में कदम कदम पर हिंसा है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
X

उदयपुर। श्री महावीर जैन विद्यालय चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित सामूहिक उपधान तप बड़े उत्साह से चल रहा है।

धर्मसभा में प्रवचन देते हुए मरुधर रत्न आचार्य रत्नसेनसूरी महाराज ने कहा कि संपूर्ण निष्पाप जीवन जीए बिना आत्मा कर्म से मुक्त नहीं हो सकती है । संपूर्ण पापमुक्त जीवन जीना हो तो साधु धर्म (पाँच महाव्रतों की प्रतिज्ञा) के स्वीकार बिना अन्य कोई विकल्प नहीं है। जिन आत्माओं में संपूर्ण निष्पाप जीवन जीने का दृढ़ मनोबल नहीं है, उन आत्माओं के कल्याण के लिए वीतराग परमात्मा ने श्रावक धर्म बताया है। धीरे और स्थिर तरीके से दौड़ जीत सकते है के नियमानुसार धीरे-धीरे थोड़े-थोड़े पापों का त्याग करते जाएंगे तो भविष्य में संपूर्ण निष्पाप जीवन जीने की भी शक्ति मिल सकेगी । बस, इसी बात को लक्ष्य में रखकर श्रावक जीवन में हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह रुपी बड़े-बड़े पापों का आंशिक त्याग किया जाता है। गृहस्थ जीवन में कदम-कदम पर हिंसा है। स्थावर जीवों की हिंसा उसके जीवन से जुड़ी हुई है, अत: वह स्थावर जीवों की हिंसा के त्याग की प्रतिज्ञा न कर सिर्फ त्रस जीवों की हिंसा का ही आंशिक त्याग करता है। इस प्रकार पाँच अणुव्रतों की प्रतिज्ञा स्वीकार कर वह आंशिक पापों से मुक्त बनता है । पाँच अणुव्रतों के बाद जो तीन गुणव्रत हैं वे हिंसा आदि पापों को और अधिक कम करने के लिए हैं। छ_े व्रत द्वारा जाने आने में नियंत्रण करने से वह अनेक पापों से बच जाता है। गृहस्थ जीवन में अधिकांश पाप भोजन और व्यापार के विषय में होते हैं, अत: सातवें व्रत के स्वीकार द्वारा वह सर्व प्रथम 22 प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों का त्याग करता है, उन अभक्ष्य पदार्थों के भक्षण में निरर्थक हिंसा रही हुई है। उन अभक्ष्य पदार्थों का त्याग कर भी वह आराम से जीवन निर्वाह कर सकता है।गृहस्थ को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए अर्थार्जन जरूरी है, अत: सातवें व्रत के माध्यम से वह उन धंधों का त्याग करता है, जिनमें आरम्भ समारम्भ बहुत अधिक है। आठवें व्रत द्वारा श्रावक मौज-मजा संबंधी पापों का आंशिक अथवा संपूर्ण त्याग करता है। इस प्रकार इन आठ व्रतों के द्वारा जब श्रावक बड़े-बड़े पापों का सहजता से त्याग करने में समर्थ हो जाता है, तब उसे साधु-जीवन के आस्वाद रूप चार-शिक्षाव्रत दिए जाते हैं। श्रावक जीवन के इन चार शिक्षा व्रतों में साधु-जीवन की ट्रेनिंग है।

नौवें व्रत द्वारा सिर्फ 48 मिनिट के लिए और ग्यारहवें व्रत के द्वारा 24 घंटे के लिए साधुवत् जीवन जीने का प्रशिक्षण मिलता है। इसी कारण सामायिक और पौषध में रहा श्रावक साधुवत् कहलाता है। पौषध व्रत में भी एक साथ सामायिक की प्रतिज्ञा है। पौषध व्रत में आहार का संयम है। अभक्ष्य पदार्थों का त्याग तो है ही, उसके साथ भक्ष्य पदार्थ दिन में एक बार से अधिक नहीं खाने की प्रतिज्ञा हो जाती है। साधु के लिए हमेशा एगमत्तं च भोयणं का जो विधान है, उसकी ट्रेनिंग पौषध द्वारा मिल जाती है।

Tags

Next Story