मुमुक्षु आत्मा को गुरु के आशय को जानकर ही प्रवृत्ति करनी चाहिए : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

मुमुक्षु आत्मा को गुरु के आशय को जानकर ही प्रवृत्ति करनी चाहिए : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
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उदयपुर। श्री महावीर जैन विद्यालय चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित सामूहिक उपधान तप बड़े उत्साह से चल रहा है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि धर्मसभा में प्रवचन देते हुए मरुधर रत्न आचार्य रत्नसेनसूरी महाराज ने कहा कि गुर्वाज्ञा से निरपेक्ष रहकर जो कोई कठिन तप व उत्कृष्ट चारित्र का भी पालन करता है तो भी उसके जीवन का कोई विशेष मूल्य नहीं है। गुर्वाज्ञा-निरपेक्ष कठिन तप को भी मात्र कायकष्ट ही कहा गया है। मुमुक्षु आत्मा को गुरु के आशय को जानकर ही प्रवृत्ति करनी चाहिए हृदय में गुरु के प्रति खूब खूब बहुमान भाव होना चाहिए। भूल से भी गुरु की आशातना न हो जाय, इसके लिए प्रतिपल जागृत रहना चाहिए । गुर्वाज्ञापालन में ही मेरी आत्मा का सच्चा हित रहा हुआ है। इस भावना से अपनी आत्मा को खूब खूब भावित करना चाहिए ।

वे शिष्य धन्यवाद के पात्र हैं जो जीवन पर्यंत गुरुकुलवास का त्याग नहीं करते हैं। मछली की सुरक्षा जल में ही रही हुई है। जल का परित्याग उसके लिए मौत का ही कारण बनता है, उसी प्रकार संयम की सुरक्षा गुरुकुलवास में ही रही हुई है। शिष्य की भूल होने पर गुरुदेव ठपका देते हैं परन्तु उनके मन में तो वात्सल्य का ही झरणा बह रहा होता है, अत: वह ठपका भी शिष्य के लिए एकांत हितकर ही है ऐसे उपकारी गुरु भगवंत हमारे लिए परम आदरणीय और उपास्य होते हैं। उनका विनय बहुमान करना हमारा परम कर्तव्य होता है ।

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