कठपुतली नाटिका कालीबाई का प्रभावी मंचन

कठपुतली नाटिका कालीबाई का प्रभावी मंचन
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उदयपुर, । जिला प्रशासन, उदयपुर, टीएडी एवं भारतीय लोक कला मण्डल के संयुक्त तत्वावधान में जनजातीय गौरव वर्ष - भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्म जयंती के उपलक्ष में कठपुतली नाटिका कालीबाई का प्रभावी मंचन हुआ।

भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि संस्था के गोविंद कठपुतली प्रेक्षालय में कठपुतली नाटिका कालीबाई का मंचन स्कूली छात्र-छात्राओं हेतु आयोजित किया गया। इस अवसर पर लगभग 250 स्थानीय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने कठपुतली नाटिका का प्रदर्शन देखा। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्था निदेशक एवं गणमान्य अतिथियों ने भगवान बिरसा मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।

उन्होंने बताया कि कठपुतली नाटिका राजस्थान में शिक्षा की अलक्ष जगाने वाली काली बाई के जीवन पर आधारित है। वर्ष 1947 में डूंगरपुर के रास्तापाल गाँव में घटी घटना को आधार बनाकर कठपुतली नाटिका के रूप में कालीबाई तैयार किया। इसमें राजस्थान के वागड़ अंचल में डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव की एक 13 वर्षीय बालिका कालीबाई जिसने शिक्षा की अलख जगाये रखने एवं अपने अध्यापक सेंगा भाई के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। नाटिका में नाना भाई खांट, काली बाई की माता को काली बाई को विद्यालय भेजने के लिए प्रेरित करते है। प्रारम्भ में तो काली बाई की माता आना-कानी करती है परंतु नाना भाई द्वारा शिक्षा का महत्व एवं उसकी आवश्यकता के बारे में बताकर काली बाई को विद्यालय भेजने पर राजी कर लेते है। नाना भाई और सेंगा भाई अध्यापक द्वारा विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने का दृश्य, गांव के जागीरदार द्वारा सेंगा भाई और नाना भाई को विद्यालय बंद करने की धमकी देते है पर भी उनके द्वारा विद्यालय को बंद नहीं किया जाता है, तत्पश्चात् अंग्रेज पुलिस अधिकारियों द्वारा सेंगा भाई एवं नाना भाई को विद्यालय बंद करने को कहा जाता है किंतु फिर भी वह विद्यालय बंद नहीं करते है। पुलिस द्वारा नाना भाई और सेंगा भाई को मारा-पीटा जाता है और सेंगा भाई को रस्सी से पुलिस की जीप से घसीटने का प्रयास किया जाता है, तब वीर बालिका कालीबाई द्वारा इसका विरोध किया जाता है और वह जीप से बंधे सेंगा भाई की रस्सी को काट देती है। जिससे पुलिस द्वारा कालीबाई पर गोली चला दी जाती है। उक्त घटना से आक्रोषित होकर आदिवासी गाँव में पराम्परागत वारी ढोल बजने लग जाता है और सैकाड़ों की संख्या में ग्रामीणों को एकत्रित होता देख पुलिस वाले भाग जाते है इसी प्रकार के दृष्यों को समायोजित कर कठपुतली नाटिका में मंचित किया गया।

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