वनवासी कल्याण आश्रम का अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन सम्पन्न

उदयपुर, /अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन 20 से 22 सितम्बर 2024 तक हरियाणा के समालखा में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन के तहत केन्द्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक में जनजाति समाज के उत्तरोत्तर विकास के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई एवं संघ एवं राज्यों के लोक सेवा आयोगों में अनुसूचित जन जातियों को प्रतिनिधित्व दिए जाने संबंधित प्रस्ताव पारित कर केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों को भेजने का निर्णय हुआ है।

राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद के प्रदेश मंत्री घेवरचंद जैन ने बताया कि केंद्र की भारतीय प्रशासनिक, पुलिस, विदेश एवं वन सेवा जैसी सिविल और सैन्य, इंजीनियरिंग मेडिकल एवं अन्य उच्च सेवाओं के लिए संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्यों की सिविल सेवाओं में चयन के लिए राज्य लोक सेवा आयोग कार्य करते हैं। ये आयोग केंद्र एवं राज्यों को इन चयनित अधिकारियों की पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति एवं अनुशासनिक कार्यवाही में भी सलाह देते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अंतर्गत ये आयोग संवैधानिक संस्थान हैं। संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों एवं अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति जी करते हैं एवं राज्यों के लोक सेवा आयोगों में ऐसी नियुक्तियां सम्बंधित राज्यों के राज्यपाल करते हैं।

उन्होंने बताया कि उच्च एवं उच्चतम न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की तरह लोक सेवा आयोगों में सदस्यों और अध्यक्ष की नियुक्तियों में वर्तमान में भी किसी तरह के आरक्षण का प्रावधान नहीं है और एक तथ्य यह भी है कि देश की आजादी के बाद 77 वर्षों के संघ लोक सेवा आयोग के इतिहास में अभी तक केवल 2 अध्यक्ष और इतने ही सदस्य जनजाति समाज से बनाए गए और वे दोनों अध्यक्ष भी उत्तर-पूर्व के मेघालय राज्य से।

कमोबेश यही स्थिति राज्यों के लोक सेवा आयोगों की है - (उत्तर-पूर्व के जनजाति बहुल नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश इसके अपवाद हैं) जहाँ शायद ही कोई जनजाति व्यक्ति अध्यक्ष बनाए गए हैं, इनमें जनजाति सदस्य भी गिनती के ही रहे हैं।

स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में हो सकता है कि इन पदों के लिए जनजाति समाज का कोई व्यक्ति सक्षम नहीं रहा हो; पर आज तो यह स्थिति नहीं है देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति, नियंत्रक एवं महालेखाकार, मुख्य चुनाव आयुक्त, राज्यपाल जैसे शीर्ष संवैधानिक पदों पर जनजाति समाज के लोग देश की सेवा कर रहे हैं या हाल के वर्षों में सेवा कर चुके हैं।

जब वर्तमान राष्ट्रपति आदरणीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति चुनी गई तो न केवल जनजाति समाज में एक गौरव एवं संतोष का भाव उपजा बल्कि सम्पूर्ण विश्व में एक सन्देश भी गया कि भारत में सभी को समान अवसर है, शासन में सब की समान भागीदारी है। अब समय आ गया है कि संविधान और सोच-विचारों में आवश्यक परिवर्तन कर संघ एवं राज्यों के लोक सेवा आयोगों में भी जनजाति समाज की भागीदारी सुनिश्चित की जाए हमें विश्वास है कि इन उच्च एवं प्रतिष्ठित संस्थानों की प्रतिष्ठा एवं गुणवत्ता से बिना समझौता किए यह किया जा सकता है; क्योंकि आज जनजाति समाज में ऐसे सक्षम एवं योग्य व्यक्ति तो उपलब्ध है; परन्तु ध्यान में आता है कि सिविल सेवाओं के अलावा बाकी पदों पर उनकी अनदेखी हो रही है अमृत-काल का यह नीतिगत निर्णय; सकारात्मक, समावेशी एवं दूरगामी प्रभाव वाला होगा और राष्ट्रीय एकता और अखंडता की भावना को और मजबूत करेगा।

उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय वनवासी कल्याण के केंद्रीय कार्यकारी मंडल केंद्र एवं राज्य सरकारों से मांग की है कि सभी आवश्यक संवैधानिक और अन्य कदम उठाए जाएँ और जनजातियों की शासन-प्रशासन में भागीदारी के नए आयाम बनाए जाएँ।

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