आयड़ तीर्थ पांच दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ

उदयपुर, । तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में कलापूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता , जिनरसा , जिनदर्शिता व जिनमुद्रा महाराज आदि ठाणा की निश्रा में पांच दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ शुक्रवार को विधि विधान के साथ हुआ।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ में शुक्रवार प्रातः: 9.30 बजे संयम उपकरण वंदावली व वाद विवाद प्रतियोगिता विषय संयम जीवन उत्तम या गृहस्थ जीवन उत्तम का आयोजन हुआ। जिसमें कई श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। नाहर ने बताया कि 8 नवम्बर को चौबीसी का कार्यक्रम, 9 नवम्बर को नवकार मंत्र के अनुष्ठान, 10 नवंबर को आदिनाथ पंचकल्याणक पूजा एवं 11 नवम्बर को प्रात: 6 बजे रायण पगलिये की प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठा पश्चात् नवकारसी का आयोजन होगा।

शुक्रवार को धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता ने कहा कि संसार के अनंत जीवों को चार गति एवं 24 दंडक में वर्गीकृत किया गया है। हमें जीवन में यूं तो बहुत कुछ मिलता है पर यदि हमें अपने हक से कम मिले तो संतोष धार लें। आप यह सोचें कि पूर्व भव में हमने भी किसी का हक छीना होगा इसलिए इस समय मेरे साथ ऐसा हो रहा है। आत्मा दो प्रकार की होती है-सम्यक दृष्टि और मिथ्या दृष्टि। सम्यक दृष्टि आत्मा वह होती है यदि कुछ गलत हो जाए तो हमेशा पश्चाताप करती रहती है और जो मिथ्या दृष्टि आत्मा है उसे किए गए पाप कर्मों का कोई पछतावा नहीं होता। उत्तम जीव की पहचान यही है कि वे अपने किए का प्श्चाताप करते हुए चिंतन करते हैं। उत्तम जीव तृष्णा का त्याग कर संतोषी बनने के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। संसार में गरीब दु:खी नहीं और अमीर सुखी नहीं है। सच तो यह है कि इसकी जिसकी इच्छा सीमित है जो इच्छाओं का संवर करता है वही सुखी रहता है। सुखी रहना है तो हमेशा अपने से नीचे वालों को देखें।

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