जैन धर्म में सामयिक धर्म की महत्ता सर्वाधिक : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

जैन धर्म में सामयिक धर्म की महत्ता सर्वाधिक : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
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उदयपुर । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि रविवार को आध्यात्मिक चातुर्मास के तहत जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की शुभ निश्रा में पुणिया श्रावक की आदर्श सामायिक का अनूठा आयोजन किया गया। इस दौरान आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि सामयिक पाप कर्म से विराम पाने की मंगल क्रिया है। यह सामयिक अल्प कालीन भी होती है और जीवन भर की भी होती है। गृहस्थ अपने जीवन में जो अल्पकालीन सामयिक की प्रतिज्ञा करते हैं।वह देश- विरति है ।और साधु अपने जीवन भर की सामयिक की प्रतिज्ञा करते हैं।वह सर्व विरति है।

अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र हिरण ने बताया कि आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा जैन धर्म में सामयिक की प्रतिज्ञा का सर्वाधिक महत्व है। स्वयं तीर्थंकर भगवान भी जब तक सामयिक का स्वीकार नहीं करते तब तक उन्हें मन: पर्यव और कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद भी वे देवनिर्मित समवसरण में सामायिक धर्म का ही उपदेश देते है।और चतुर्विध संघ की स्थापना भी सामायिक धर्म की प्रतिज्ञा प्रदान करने के बाद ही करते हैं। पर्युषण महापर्व 20 से अगस्त से शुरू होगे।

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