संस्कृति-ज्ञान को जड़ों से जोड़ना होगा- प्रो. देवनानी
उदयपुर/ संस्कार संस्कृति हो या कोई ज्ञान जड़ों से जोड़ंेगे तो ही नई पीढ़ी तक पहुंचाया जा सकेगा। पर्यावरण चेतना सनातन का अभिन्न अंग रहा है आवश्यकता, जागरूकता और अनुकरण से विश्व की पर्यावरणीय समस्याओं का हल संभव है। भविष्य को ध्यान में रखते हुए अतीत से प्रेरणा लेते हुए वर्तमान को आगे ले जाना होगा । व्यक्ति निर्माण के साथ महत्वाकांक्षाओं की सीमित परिधि ही वो आधार है जो तकनीकी युग में समाज और राष्ट्र के लिए उचित चिन्तन का मार्ग प्रशस्त करता है। पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के लिए हर स्तर पर व्यक्ति और सामूहिक प्रयासों से ही सार्थक और सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते है।
उक्त विचार शनिवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में भारत के जल संसाधन: अतीत, वर्तमान और भविष्य विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी ने बतौर अध्यक्षीय उद्बोधन में कही।
उन्होंने कहा, सारे संसाधन मुझे चाहिए, सारे पानी का उपयोग मैं ही करूं, चाहे बोरवेल खुदवा दो, चाहे अंडरग्राउंड बनवा दो, इस अनुभूति से ऊंचा उठना होगा। भारतीय सनातन संस्कृति सभी के सुख की कामना करने वाली है, सिर्फ अपने लिए नहीं। इसलिए हमें भारतीय संस्कृति से जुड़ना होगा। सबका भला सोचते हुए सभी को साथ लेकर चलने के लिए हर व्यक्ति को प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण चेतना सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। जल भी सनातन संस्कृति में पूजित रहा है।
उन्होंने कहा कि योजनाओं में खामियां होती हैं, स्मार्ट सिटी में भी खामियां दिखाई दे रही हैं, ब्यूरोक्रेट्स धन के लालच में योजनाएं बनाते हैं, लेकिन यह स्थिति तभी सुधर सकती है जब हर दल, हर समाज, हर व्यक्ति ‘नेशन फर्स्ट’ के विचार को लेकर आगे बढ़ेगा।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि विश्व में पहली बार झीलों को जोड़ने की शुरूआत मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा फतेह सिंह जी ने 1890 मंे की थी। झीलांेे की नगरी वाटर हार्वेटिंग के क्षेत्र में एक बड़ा उदाहरण है जिसका श्रेय यहाॅ के राजा महाराजाओं को जाता है जिन्होंने एक अदभुत उदाहरण हमारे सामने पेश किया है। उन्होने कहा कि जल प्रबंधन और संरक्षण के लिए स्थानीय से लेकर सामूहिक भागीदारी आवश्यक है साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा , तकनीक व एआई का उपयोग करके इस दिशा में किए जा रहे कार्य को सार्थक दिशा प्रदान की जा सकती है।
मुख्य अतिथि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव डाॅ. अतुल कोठारी ने कहा कि हमारे देश में पानी, बिजली की कोई कमी नही है, आवश्यकता है उसके कुशल प्रबंधन की। जिसकी शुरूआत हमें अपने आप से ही करनी होगी। हमें एक ऐसे मध्यम मार्ग को अपनाना होगा जिसमें विकास और पर्यावरण के संतुलित पहिए से प्रगति का पथ बन सके। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। इसके लिए शिक्षा को व्यवहारिक बनाना बेहद आवश्यक है। प्रयोग, अनुभव और क्रियान्वयन के साथ तार्किकता व वैज्ञानिकता आधारित ज्ञान से युवा पीढ़ी को जोड़ना होगा। पर्यावरणीय संकटांे के स्थायी समाधान के लिए इस ज्ञान को पाठ्यक्रम से जोड़ कर व्यवहार में लाया जा सकता है। जिसमें दैनिक जीवन माॅडल इसका आधार रहेगा तथा हम अपने दैनिक जीवन में छोटे बदलावों से पानी के अपव्यय को रोक सकत है।
पर्यावरण शिक्षा के राष्ट्रीय संयोजक संजय स्वामी ने दो दिवसीय कार्यशाला की जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला में देश भर से 150 से अधिक पर्यावरणविद् भाग ले रहे है जो दो दिनों तक जल के कुशल प्रबंधन पर चिंतन, विचार एवं क्रियांवित करने पर मंथन करेंगे।
संयोजक डाॅ. युवराज सिंह राठौड़ ने बताया कि कार्यशाला में अतिथियों द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला की सोविनियर एवं जल पुरूष डाॅ. राजेन्द्र सिंह की पुस्तक का विमोचन किया।
जल पुरूष डाॅ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि अब देश जलविहीन हो रहा है। इसके बचाने की चिंता व्यक्ति का कर्तव्य है। अभी भारतवासी को विश्व में क्लाइमेट रिफ्यूजी नहीं कहते, सबकी आस भारत से बची हुई है, लेकिन उसको कायम रखने के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि पंचमहाभूत ही भगवान का साक्षात स्वरूप है। बिना पानी और खेती के भारत पुनः विश्व गुरु नहीं बन सकता।
संयोजक डाॅ. युवराज सिंह राठौड ने बताया कि इस अवसर पर राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, शहर विधायक ताराचंद जैन, ग्रामीण विधायक फुलसिंह मीणा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए जल प्रबंधन पर सामुहिक भागीदारी पर जोर देने की बात कही।
कार्यशाला में पुर्व कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा, कुलपति प्रो. बलराज सिंह, प्रो. चंद्रशेखर कच्छावा, प्रोे. सुरेन्द्र सिंह, डाॅ. ज्येन्द्र जाधव, डाॅ. सुबोध विश्नोई, डाॅ. गायत्री स्वर्णकार, डाॅ. चन्द्रप्रकाश , अशोक सोनी, रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, डाॅ. पारस जैन, डाॅ. युवराज सिंह राठौड़, डाॅ. अमी राठौड, डाॅ. बबीता रसीद, डाॅ. मनीष श्रीमाली, डाॅ. बालुदान सहित देश भर के पर्यावरणविद्, शोधार्थी एवं विद्यार्थियो ने भाग लिया।
संचालन डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डाॅ. मलय पानेरी ने जताया।