कल्प सूत्र के सातवें व्याख्यान में पार्श्वनाथ , नेमिनाथ और आदिनाथ प्रभु के चरित्र का वर्णन

कल्प सूत्र के सातवें व्याख्यान में पार्श्वनाथ , नेमिनाथ और आदिनाथ प्रभु के चरित्र का वर्णन
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उदयपुर । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में पर्युषण महापर्व के तहत आचार्य संघ के सानिध्य में बुधवार को संवत्सरी महापर्व आयोजन किया जाएगा। जिमसें सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना व शाम को प्रतिक्रमण आदि की तप आराधना करेंगे।

मंगलवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा कि पर्वाधिराज महापर्व का आज सातवां दिन है। आज के दिन कल्पसूत्र का सातवां और आठवां व्याख्यान पढ़ा जाता है। कल्प सूत्र के सातवें व्याख्यान में पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और आदिनाथ प्रभु के चरित्र का संक्षेप में वर्णन आता हैं तथा अजितनाथ से लेकर नमिनाथ तक के बीस तीर्थंकरों के निर्वाण के बीच के अंतरकाल का निर्देश है। उसके बाद आठवें व्याख्यान में प्रभु महावीर की पाट परंपरा का वर्णन आता है। प्रभु महावीर के निर्वाण के 980 वर्ष बाद कल्पसूत्र आदि ग्रंथों को पुस्तकारुढ किया गया। उसके पहले सभी ज्ञान मौखिक दिया जाता था । 980 वर्ष के इस काल में अनेक अनेक महापुरुष पैदा हुए है। उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन आता है। महावीर प्रभु के प्रथम पट्टधर बनने का सौभाग्य 5वें गणधर सुधर्मा स्वामी को प्राप्त हुआ था। सबसे अधिक आयुष्य भी उनका ही था। उनका आयुष्य 100 वर्ष का था । सुधर्मा स्वामी के पट्टधर जम्बूस्वामी हुए । देवांगना जैसी आठ-आठ कन्याओं के साथ जिनका पाणिग्रहण हुआ था। वे अमाप संपत्ति के मालिक थे फिर भी अत्यंत विरक्त बने जंबूकुमार ने लग्न के दूसरे दिन ही भागवती-दीक्षा अंगीकार की थी। जम्बूस्वामी के पट्टधर आर्य प्रभव स्वामी हुए । उनके पट्टधर चौदह पूर्वधर शय्यंभवसूरि हुए, जिन्होंने अपने पुत्र मनक के उद्धार के लिए पूर्वों में से उधृत कर दशवैकालिक सूत्र की रचना की थी, इस आगम में साध्वाचार का खूब सुंदर वर्णन है। उसके बाद क्रमश: चौदह पूर्वधर महर्षि भद्रबाहुस्वामी हुए, जिन्होंने द्वादशांगी पर निर्युक्तियों की रचनाकर महान उपकार किया है। उसके बाद स्थूलभद्र स्वामी हुए, जो ब्रह्मचर्य सम्राट् के नाम से प्रसिद्ध हुए। जिन्होंने काम के घर में रहकर काम का नाश किया था। अपने निर्मल ब्रह्मचर्य के द्वारा कोशा वेश्या को भी धर्मबोध दिया था। उसके बाद दश पूर्वधर महर्षि वज्रस्वामी हुए। जिन्होंने लघु वय में दीक्षा अंगीकार की थी। साध्वीजी भगवंत के मुख से पालने में झुलते झुलते जिन्होंने ग्यारह अंग कंठस्थ कर लिये थे। उन्होंने अपने जीवन में अपनी धर्म देशना द्वारा अनेक पुण्यात्माओं को धर्मबोध दिया था। उसके बाद आर्यरक्षितसूरि हुए। चौदह विद्याओं में पारगामी होने पर भी एक मात्र माँ की इच्छापूर्ति के लिए जिन्होंने भागवती दीक्षा अंगीकार की थी और उपदेश द्वारा अपने परिवार का भी उद्धार किया था।

उन्होंने सभी आगमों को द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग और धर्म कथानुयोग के रूप में विभाजित किया था। इस प्रकार कल्पसूत्र के आठवें व्याख्यान में प्रभु महावीर की 34 पाटपरंपरा का वर्णन है। इस कल्पसूत्र को ग्रंथस्थ करने का कार्य महावीर प्रभु की पाट परंपरा में हुए देवद्र्धिगणी क्षमाश्रमण ने किया था। इन महापुरुषों के जीवन में बहुत कुछ विशेषताएं थी। उन विशेषताओं को जानकर अपने जीवन को भी समुज्ज्वल बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए ।

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