दहेज देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप - पुलक सागर

दहेज देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप - पुलक सागर
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उदयपुर । सर्वऋतु विलास स्थित महावीर दिगम्बर जैन मंदिर में राष्ट्रसंत आचार्यश्री पुलक सागर महाराज ससंघ का चातुर्मास भव्यता के साथ संपादित हो रहा है। बुधवार को टाउन हॉल नगर निगम प्रांगण में 27 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के 18वें दिन नगर निगम प्रांगण में विशेष प्रवचन हुए। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फान्दोत ने बताया कि बुधवार को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आयुक्त नगर निगम अभिषेक खन्ना, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चेतना भाटी, देहात जिलाध्यक्ष भाजपा पुष्कर तेली, पूर्व सभापति नगर परिषद रविन्द्र श्रीमाली, संस्थापक भगवती सेवा सदन जितेश कुमावत, विद्या जावरिया, लक्ष्मी गदावत एवं सुशीला कारवां उपस्थित थे ।

फान्दोत ने बताया कि हरियाणा बीजेपी प्रभारी और राजस्थान के पूर्व भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर से आशीर्वाद लेने पहुंचे, जहां उन्होंने आशीर्वाद लेकर वर्तमान में चल रहे संगठन के कार्यों से अवगत करवाया । इस अवसर पर विधायक ताराचंद जैन, शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़, देहात जिलाध्यक्ष पुष्कर तेली सहित कई कार्यकर्ता मौजूद थे ।

चातुर्मास समिति के परम संरक्षक राजकुमार फत्तावत व मुख्य संयोजक पारस सिंघवी ने बताया कि ज्ञान गंगा महोत्सव के 18वें दिन आचार्य पुलक सागर महाराज ने कहा नारी के तीन रूप है नारी लक्ष्मी है, सरस्वती है और दुर्गा है । जब नारी अपने परिवार को संभालती है, जब नारी अर्थव्यवस्था को संभालती है, वह लक्ष्मी का रूप होती है । जब नारी अपने परिवार को संस्कार देती है, तब सरस्वती बन जाती है और जब नारी बुराइयों से लड़ती है तो रण चण्डी दुर्गा का रूप धारण कर लेती है । नारी अपनी शक्ति को पहचाने, नारी शोषित ना हो, नारी पिछड़ी हुई ना हो । आज की नारी इक्कीसवीं सदी की नारी है, लेकिन बड़े दुख का विषय है कि इतना शिक्षित एवं पढ़ी लिखी होने के बाद भी, आधुनिक युग में जीते हुए भी नारी नारी की दुश्मन बन कर खड़ी है । जितना पुरुषों ने नारी का शोषण नहीं किया, उतना नारी नारी का शोषण करती है, मैं पुलक सागर कहता हूं कि आप घरों में जाकर देखो, पारिवारिक हिंसा और घरेलू हिंसा पुरुषों की वजह से कम, महिलाओं की वजह से ज्यादा हुआ करती है । एक मां बेटा चाहती है, बेटी नहीं । बेटा हो जाए तो पूरे मोहल्ले में मिठाइयां बांटती है और बेटी हो जाए तो ऐसा मुंह बनाती है, जैसे किसी ने नीम का काढ़ा पिला दिया हो । नारी ही नारी का उत्पीड़न कर रही है, एक बात बताओ अगर बेटियां नहीं होगी तो दो दिन बाद रक्षा बंधन कौन मनाएगा । नारी कोई भोगने की वस्तु नहीं, नारी तो पूजा की मंगल एवं पावन थाली हुआ करती है । नारी महान होती है । नारी ना हो तो घर को बर्बाद होने में देर नहीं लगती लेकिन दुख इस बात का है कि कभी कभी नारियां ही घर को बर्बाद कर दिया करती है ।

लोग कहते है पुरुष प्रधान देश है, लेकिन मैं कहता हूं कि यदि कोई नारी सत्कर्म करती है, सन्मार्ग पर चलती है तो पुरुषों के द्वारा नारी वंदनीय हो जाया करती है । आज भी कुछ समाज में, गांव में जहां पर दहेज मंगा जाता है । लडक़े वाले दहेज के नाम पर मोटी रकम वसूलते है, लेकिन कही कही लडक़ी वाले भी पैसा लेने लगे है । दहेज की वजह से लडक़ी प्रताडि़त होती है । बेटियों को जिंदा जला दिया जाता । दहेज देश के लिए बड़ा अभिशाप है । हो सुहागिन तो सती बनकर वो जल जाती है, हो अभागीन तो उसे सास निगल जाती है, और शमा की तरह है अबला की कहानी यारो, रोशनी करके जो चुपचाप निकल जाती है । मरने पर विवश कर दिया जाता है लडक़ी को, दो बहुओं में सास भेदभाव करती है । जो बहु ज्यादा दहेज लाती है, उसे ज्यादा प्यार करती है और जो दहेज नहीं लाती है उसके साथ दुव्र्यवहार किया करती है । सास मंदिर में एक घंटा पूजा करती है, और घर अपनी बहू को प्रताडि़त करती है तो ये पूजा ढोंग के समान है ।आजकल शादी के पहले ही सब कुछ हो जाता है, प्री वेडिंग शूट पर लडक़े लडक़ी को भेज देते है, शादी के बाद एक दूसरे से आकर्षण खत्म हो जाता है, फिर बचता क्या है लड़ाई झगड़ा, वाद और विवाद । पहले के जमाने में मोहल्ला नाचता था, दुल्हा दुल्हन देखते थे, आजकल के जमाने में दुल्हा दुल्हन नाचते है, और मोहल्ला देखता है । आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति में सब कुछ खत्म हो गया है । ये फिल्मी सितारे नोट कमा रहे है और तुम उनके चक्कर में नोट गंवा रहे हो । थियेटर में जाओगे तो लाइट बंद करनी पड़ती है और संतों की सभा में जाओगे तो दीप जलाना पड़ता है । बंद लाइट में तो सिर्फ उल्लू को नजर आता है, तुम क्यों उल्लू बन रहे हो ।

चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रकाश सिंघवी व प्रचार संयोजक विप्लव कुमार जैन ने बताया कि 9 अगस्त को रक्षाबंधन एवं 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर विशेष आयोजन होंगे । इस अवसर पर विनोद फान्दोत, राजकुमार फत्तावत, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, शांतिलाल नागदा सहित उदयपुर, डूंगरपुर, सागवाड़ा, साबला, बांसवाड़ा, ऋषभदेव, खेरवाड़ा, पाणुन्द, कुण, खेरोदा, वल्लभनगर, रुंडेडा, धरियावद, भीण्डर, कानोड़, सहित कई जगहों से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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