पांचवां दिन : साधु पद की आराधना से सिद्धत्व की प्राप्ति होती है : आचार्य पद्मभूषणरत्न सुरिश्वर महाराज

पांचवां दिन : साधु पद की आराधना से सिद्धत्व की प्राप्ति होती है : आचार्य पद्मभूषणरत्न सुरिश्वर महाराज
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उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में मंगलवार को तपस्वीरत्न आचार्य भगवंत पद्मभूषणरत्न सुरिश्वर महाराज, साध्वी भगवंत कीर्तिरेखा महाराज आदि ठाणा की निश्रा में नो दिवसीय नवपद आयम्बिल ओली की शाश्वती आराधना के पांचवें दिन विविध आयोजन हुए।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि मंगलवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे संतों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। वहीं नो दिवसीय नवपद की आयंबिल ओली में 125 तपस्वी नवपद की आयंबिल ओली का सामूहिक तप कर रहे है। नाहर ने बताया कि आगामी 12 से 14 अप्रैल को 12 से 20 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए संस्कार शिविर का आयोजन होगा।

मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में आचार्य पद्मभूषणरत्न सूरीश्वर महाराज ने श्री नवपद की आराधना के पांचवें दिन नवपद की आराधना के विषय में बताया कि उपाध्याय पद की आराधना हमें विनय की भावना से भर देती है। विनय से ही आत्म जागृति का पथ उजागर होता है। विनय की भावना से अहंकार, घमण्ड का विसर्जन होता है। उपाध्याय पद की आराधना विनय प्राप्ति की आराधना है। विनय हमे लघुता सिरपानी है। आचार्य भगवन्त तीर्थंकर के समान है तो उपाध्याय भगवन गणधर के समान हैं। जब तीर्थकर भगवान केवलज्ञान के बाद अपनी प्रथम धर्म देशना देते है तो उसमें त्रिपदी की देशना देते है। इस त्रिपदी के ऊपर गणधर भगवान् द्वादशांगी की रचना करते हैं। इसी आदर्श अंग के जाता ध्याता उपाध्याय भगवंत होते है। उपाध्याय भगवंत का मुख्य कार्य है ज्ञान दान देना। साधु जीवन मे पाँच प्रहट तक स्वाध्याय करने का विधान है। ज्ञान दान में सदा अप्रभत्त रहते हैं। जिस प्रकार सतत जल के प्रवाह से पत्थर भी टुकड़े हो जाते हैं, उसी प्रकार उपाध्याय भगवान सतत ज्ञान दान से मुर्ख शिष्य को भी पंडित बना देते हैं। शास्त्र में कहा गया है कि जो संयमी को पढ़ाता है और पढ़ता है, उसे तीर्थकर नामकर्म का बन्ध होता है। संयमी की दिनचर्या में सबसे ज्यादा समय स्वाध्याय-पढ़ाई में ही व्यतीत होता है शिष्यों को पठन- पाठन के द्वारा आगे बढ़ाते है. उपाध्याय भगवंत गण समुदाय का ध्यान रखने वाले होते है. सूत्र और अर्थ की बाचना देने वाले होते हैं, सरलता, नम्रता के साक्षात् मूर्तिवान होते हैं, अभिमान और अहंकार के विजेता होते हैं।

सुरत से आए मोन्टू भाई ने जिनशासन के गुरु तत्व के बारे में उद्भुत विवेचना की। मुम्बई के स्टार कलाकार मोहित भाई ने देवों से बड़ा जैन मुनि का मान है की संगीतमय प्रस्तुति दी।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, सतीश कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चतर पामेचा, राजेश जावरिया, चन्द्र सिंह बोल्या, दिनेश भण्डारी, अशोक जैन, दिनेश बापना, कुलदीप मेहता, नरेन्द्र शाह, चिमनलाल गांधी, गोवर्धन सिंह बोल्या आदि मौजूद रहे।

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