बेटी की विदाई में कार दो या ना दो, लेकिन संस्कार अवश्य देकर भेजना : राष्ट्रसंत पुलक सागर

उदयपुर । सर्वऋतु विलास स्थित महावीर दिगम्बर जैन मंदिर में राष्ट्रसंत आचार्यश्री पुलक सागर महाराज ससंघ का चातुर्मास भव्यता के साथ संपादित हो रहा है। बुधवार को टाउन हॉल नगर निगम प्रांगण में 27 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के चौथे दिन नगर निगम प्रांगण में विशेष प्रवचन हुए। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फान्दोत ने बताया कि बुधवार को कार्यक्रम में पूर्व विधायक वल्लभनगर प्रीति गजेंद्र शक्तावत, यूडीए कमिश्नर राहुल जैन, समाजसेवी महेन्द्र टाया, जेएसजी रीजनल चेयरमैन अरुण मांडोत, एवीवीएनएल एसी गिरीश जोशी, अरविंद चौधरी, पवन प्रधान मौजूद थे । कार्यक्रम में पाद प्रक्षालन अनिल सिपरिया परिवार एवं शास्त्र भेंट सुनील सिपरिया परिवार ने किया । कार्यक्रम की शुरुआत में मंगलाचरण बहुमंडल गायरियावास ने किया । इस दौरान तेरापंथ युवक परिषद के मेघा रक्तदान शिविर के पोस्टर का विमोचन भी किया गया।
चातुर्मास समिति के पमर संरक्षक राजकुमार फत्तावत व मुख्य संयोजक पारस सिंघवी ने बताया कि ज्ञान गंगा महोत्सव के चौथे दिन आचार्य पुलक सागर महाराज ने कहां कि बेटी का घर बसाओ उजाड़ो नहीं, घरों में सहन शक्तियां नहीं है, बहुएं सुनने को तैयार नहीं है । मां बेटी को 9 महीने पेट में रखती है, लेकिन पिता ताउम्र अपनी पलकों पर बिठा कर रखता है । पिता की भूमिका दिखती नहीं है, लेकिन होती बहुत बड़ी है । पिता की खुशियां है बेटी, पिता की लक्ष्मी है बेटी । हर बेटी पिता को ज्यादा चाहती है, लेकिन पिता उसे पलकों पर बिठा कर रखता है । जीवन में तीन क्षण ऐसी आते है, जब पिता के आंसू निकलते है, चाहे पिता कितना ही कठोर दिल क्यों ना हो... पहली बार जब बेटी की लग्न लिखाई होती है, दूसरी बार जब बेटी डोली पर बैठती है और तीसरी बार जब कुछ वर्षों बाद बेटी लौट कर वापस अपने पीहर आ जाते तो । पिता बेटी का घर बसाने के लिए सब कुछ लुटा देता है । बेटी आती है तो लक्ष्मी को साथ लेकर आती है । कितना भी गरीब हो लेकिन बेटी के विवाह में कहीं ना कहीं से पैसे की व्यवस्था हो ही जाती है । पिता वो बात वृक्ष होता है जो खुद अपनी इच्छाओं को मार कर अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखता है। दुनिया की तमाम बुराइयों से बेटी को बचा कर रखता है । बेटी की मां से मैं इतना ही चाहता हूं कि तुम जैसी बहुत चाहते हो, अपनी बेटी को भी वैसा ही बनाना । जैसे मेरा घर खुशहाल है वैसे मेरी बेटी का भी घर होना चाहिए । जो बेटियां अपने ससुराल की एक एक छोटी से छोटी बात अपनी मां को बताती है, उन बेटियों का घर कभी बस नहीं सकता, और जो मां अपनी बेटी को इन बातों पर श्रेय देती है, वह मां अपनी बेटी का घर उजाड़ने में पूरा रोल निभाती है । बेटी को सिखाओ की तू जल्दी उठना सीख, खाना बनाना सीख आदि छोटी छोटी बातों को सिखाओ, सिर्फ डिग्रियां और पढ़ाई से जीवन नहीं चलेगा ।
आचार्य ने कहा कि एक पिता था, उसकी बेटी थी, उसे वह बहुत प्यार करता था । बेटी ने जो डिमांड की वह तुरंत पूरी करता था चाहे कार हो, मोबाइल हो या कपड़े । एक बेटी को भी ध्यान रखना चाहिए कि वह भी जिंदगी पर मर्यादा में रहकर बाप की इज्जत बना कर रखे । एक दिन पिता ने अपनी बेटी की शादी कर दी, वह सेठ पिता ऐसे टूट गया कि जैसे उसका जिगर का टुकड़ा चला गया हो । पिता के पास एक दिन फोन आया मै अब इस घर में एक पल भी नहीं रह सकती, मुझे अभी लेकर जाओ, यदि मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो अभी के अभी आओ । पिता टेंशन में बेटी के घर पहुंचा, वहां पर उस पिता की कोई आवभगत नहीं । देखा सब मौन है, सब अपना अपना काम कर रहे है । पिता ने देखा कि स्थिति तनावपूर्ण है, सीधा वह बेटी के कमरे में गया, बेटी को पूछा हुआ क्या? पिता ने कहां कि तेरी सास से इजाजत तो ले लूं ? बेटी ने कहा कोई जरूरत नहीं । सास से बेटी के पिता से कहा कि ले जाओ अपनी बेटी को, क्या संस्कार दिए इसे, जीवन खराब कर दिया है इसने 20 दिन में । बेटी को पिता घर ले आया, रास्ते भर पिता चिंतित, बेटी ने कहा कि अब में कभी ससुराल नहीं जाऊंगी । बेटी अगर अपने बाप के घर शादी के बाद ज्यादा रह जाए तो बाप को नहीं सबसे ज्यादा परेशानी पड़ोसी को होती है । तरह तरह की बातें हुआ करती है । ना यहां सुख ना वहां सुख । इसलिए मैं यही कहता हूं ससुराल की गालियां अच्छी है ना कि अपने घर की ऐशो आराम । बेटियों को सहनशील बनाओ, हर परिस्थिति में ससुराल वह अपना घर संभाले । एक दिन झरोखे में बेटी उदास, बाप ने पूछा बेटी दुखी है क्या? बेटी बोली मै आई तो यहां सुखी रहने थी, लेकिन भाभियों के ताने और ना कोई इज्जत । एक दिन बेटी को पिता ने पूछा तेरा ससुर कैसा है, राक्षस । तेरा घर कैसा है, नरक । सास, ननद, देवर और पति सब बेकार है, तो पिता को पता चल गया कि कमी उनमें नहीं, कमी बेटी में है । पिता ने मैं एक संत से मिलकर आया हूं उन्होंने कहा कि मैं तुम्हे एक मंत्र देता हूं, बेटी को कहो 6 महीने अपने से बड़ों को सामने से जवाब नहीं देना है और सभी से प्यार से बात करना है । बाप ने बेटी को ससुराल भेजा और कहा कि मेरे 6 महीने तक मंत्र के जाप करने है और तुझे गुस्सा नहीं करना है, यदि तू बिल्कुल ऐसा ही करेगी तो ससुराल में सभी तेरे वश में हो जाएंगे ध्यान रखना अगर 6 महीने में गुस्सा किया तो मेरे जाप जो मैं करूंगा उनका कोई मतलब नहीं रहेगा । ऐसा कहकर बाप ने बेटी को मानसिक तौर पर तैयार कर दिया कि उसे घर में शालीनता से रहना है। ससुराल जाकर सभी से प्रेम से बात करना, खाना बनाना, घर का काम करना और बड़ों के पैर छूना जैसे काम उसने शुरू कर दिए । 6 महीने तो ठीक है मात्र 2 महीने में ससुराल स्वर्ग हो गया । सास ने बेटी के बाप को फोन पर पूछा क्या यह वहीं लडक़ी है, जिसे आपने शादी करके भेजा था ? बेटी ने पूछा कि पापा वो मंत्र कौनसा था, बाप ने कहा कोई मंत्र नहीं था, मैने तो एक माला भी नहीं जपी, लेकिन तूने उस बात को समझकर अपने घर को स्वर्ग बना लिया, आज तूने मेरा नाम रोशन कर दिया ।
इस अवसर पर विनोद फान्दोत, राजकुमार फत्तावत, महामंत्री प्रकाश सिंघवी,विप्लव कुमार जैन, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, शांतिलाल नागदा सहित उदयपुर, डूंगरपुर, सागवाड़ा, साबला, बांसवाड़ा, धरियावद, भीण्डर, कानोड़, सहित कई जगहों से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।