दिवसीय कथा की पूर्णाहुति में सैकड़ों भक्तों ने लगाई आहुति

दिवसीय कथा की पूर्णाहुति में सैकड़ों भक्तों ने लगाई आहुति
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उदयपुर,। शहर के आरके पुरम में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय भागवत कथा का समापन पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हुआ।

संयोजक विठ्ठल वैष्णव ने बताया कि अंतिम दिन पूरा प्रांगण श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया। सभी भक्तों ने खूब आनंद प्राप्त किया। कथा पूर्णाहुति के अवसर पर मुख्य यजमान नरेंद्र वैष्णव ने व्यासपीठ पर महाराज का सम्मान किया गया। सभी भक्तों द्वारा महाआरती की गई और पूरा प्रांगण जयकारों से गूंज उठा। कृष्ण, रुक्मणि, सुदामा की सुंदर झांकी का मंचन भी किया गया । झांकी का दर्शन करके सभी श्रोता भाव विभोर हो गए ।

व्यासपीठ से कथावाचक पुष्कर दास महाराज ने भागवत कथा के सातवें दिन पूर्णाहुति में कहा कि हम कोई भी सत्कर्म, पूजा,पाठ करते हैं परन्तु जब तक सत्संग में नहीं बैठेंगे तब तक सत्कर्म की विधि का ज्ञान नहीं हो सकता। जहां भक्ति होगी ईश्वर पीछे पीछे आता है, भगवान कृष्ण ने जो कहा और राम ने जो किया वो हमें पालन करना चाहिए । राम, कृष्ण दोनों को अपने जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ा।

कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज ने कहा कि रामायण में राम और भरत का प्रेम था उसी तरह घर घर के प्रेम का वातावरण होना चाहिए । कृष्ण और सुदामा में प्रेम था तभी जगत का मालिक द्वारकाधीश मिलने के लिए दौड़े चले आये । हम भगवान के दर्शन करने जाते और सुदामा मिलने जाते है, दर्शन में दूरी है और मिलने में नजदीकता है । सुदामा ने द्वारका नगर में जाकर पूछा द्वारा कहा है इसलिए उस नगर का नाम द्वारका पड़ा। सुदामा के जीवन में इतनी गरीबी होने के बाद भी अहसास नहीं होने दिया, पत्नी का नाम सुशीला था जैसा नाम था वैसा गुण भी था। सुदामा चावल की पोट लेकर द्वारिका जाते है और द्वारकाधीश ने मित्र सुदामा का खूब स्वागत सम्मान किया और स्वयं भगवान ने रुक्मणी जी के साथ सुदामा के चरण प्रक्षालन किए एवं भगवान ने सुदामा की गरीबी दूर करी।

कथा के सातवें दिन उम्मेद सेवा संस्थान के सचिव राजेंद्र सिंह सिसोदिया, ओनार सिंह, यशवंत पालीवाल, अतुल शर्मा, परमवीर सिंह राव, सरपंच मनोहर सिंह, ललित वैष्णव,भुवनेश शर्मा, कमल वैष्णव, अतुल चौधरी सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे।

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