जीवन में कष्ट आए तो समझना कि अतीत के कर्म उदय में आ रहे हैं : साध्वी जयदर्शिता

उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता , जिनरसा , जिनदर्शिता व जिनमुद्रा महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शनिवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। चातुर्मास में एकासन, उपवास, बेले, तेले, पचोले आदि के प्रत्याख्यान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन ले रहे हैं और तपस्याओं की लड़ी लगी हुई है।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शनिवार को आयड़ तीर्थ पर धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता ने कहा कि वर्तमान में हमारा व्यवहार निर्मल हो, छल-कपट से रहित हो फिर भी जीवन में कष्ट आए तो समझना कि अतीत के कर्म उदय में आ रहे हैं। हर कर्म का उदयकाल अलग-अलग होता है। जैन दर्शन के अनुसार देवगति के देव और नरक गति के जीव मरकर पुन: केवल तिर्यंच गति एवं मनुष्य गति में ही जन्म लेते हैं। आयु दो प्रकार की होती है नरक के जीवन की आयु निरूपक्रमी होती है जबकि दूसरी आयु सोपक्रमी कहलाती है। सोपक्रमी में आयु वाला मनुष्य 100 वर्ष की आयु को 2 वर्ष में भी पूर्ण कर लेता है जैसे कि तेल से भरे कटोरे में यदि एक पतली बाती हो तो वह बाती दीर्घकाल तक चलेगी किंतु यदि इस कटोरे में एक साथ कई बातियां संजो दें तो तेल कुछ ही समय में समाप्त हो जाएगा। यही दशा सोपक्रमी आयु वाले की होती है अर्थात् सोपक्रमी आयु वाला थोड़े समय में ही अधिक आयु का भोग कर लेता है। आयुष्य की डोर चाहे लंबी हो या छोटी हो लेकिन यदि हम जीवन में ऐसे काम करें कि पाप से बचते हुए शुभ कार्य करते हुए आगे बढ़े तो हमारा जीवन उन्नत बन सकता है। सोने से पूर्व हम अपनी आत्मा का बोध करते हुए जगत के सब जीवों से क्षमायाचना करें ,साथ ही अपने इष्ट देव का स्मरण करें व शुभ भावों के साथ शयन करें तो हम चैन की नींद सो सकते हैं। नाहर ने बताया कि 29 सितम्बर नो दिवसीय आयम्बिल तप की शास्वत ओली प्रारम्भ होगी।
