आज के समय में बच्चों को सही शिक्षा देने की जरूरत है : पुष्कर दास महाराज

आज के समय में बच्चों को सही शिक्षा देने की जरूरत है : पुष्कर दास महाराज
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उदयपुर, । झीलों की नगरी के बेदला रोड, शुभ सुंदर टावर,साइफऩ चौराहा,पेट्रोल पम्प के पास में पुष्कर दास महाराज द्वारा संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन कहा सत्संग का महत्व ऋषि मुनियों ने समझा। कथा सबसे श्रेष्ठ कार्य है, महापुरुषों ने ग्रंथ लिखे जगत के कल्याण के लिए। जो शिष्य अपने गुरु की,जो बेटा,बेटी अपने मां,बाप की डाट नहीं सहन कर सकता वो अपने जीवन में दुखी ही होगा । आगे प्रथम अध्याय की कथा में आत्मदेव की कथा आती है। आत्मदेव के बालक नहीं होने के कारण वह परेशान होते हे और संत उनके घर आते है और प्रसाद देते है। पत्नी धुंधुली गर्भ का दुख नहीं भोगना चाहती ओर प्रसाद का सेवन नहीं करती है प्रसाद गाय को खिला देती है। इधर उसकी बहन गरीब होती हे ओर धुंधुली बहन को धन देती ओर अपनी बहन का बेटा अपने घर ले आती है। इधर गाय के बच्चा होता हे शरीर इंसान के जैसा ओर कान गाय की तरह जिसका नाम गोकर्ण रखा। गोकर्ण संत की प्रसादी था वह तो पूजा,संध्या आदि करता बहन का बेटा धुंधूकारी बड़ा उद्यमी स्वभाव का होता है। बड़ों की बात,संतों की बात ओर आंवले का स्वाद बाद में पता चला है। आत्मदेव को एक बेटा सुख दे रहा हे एक बेटा दुख। महाराज ने कहा बच्चों के ऊपर मां का स्वभाव कैसा होता है वही असर करता है। आज के समय बच्चे नशे की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं। बच्चों पर माता पिता को नियंत्रण रखने की जरूरत है । बेटियों को सही शिक्षा देने की जरूरत है। धुंधूकारी बुरे कार्य करने लगा । एक दिन पांच स्त्रियों में फंस गया। पांच स्त्रियां शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध। धुंधूकारी की अकाल मौत होने के कारण वह प्रेत बनकर भटकता हे उसकी आत्मा बांस में बैठी थी और सात गांठ से बंधा हुआ था भागवत कथा सुनने से उसका उद्धार हुआ। आगे कहा भागवत में कलयुग का स्थान चार जगह बताया है स्वर्ण (सोना) में,जुआ में,शराब में,बाजारू स्त्री में, शास्त्रों में सप्त सरोवर,संगीत के 7 स्वर,इसलिए भागवत की कथा 7 दिवसीय रखी जाती है। राजा परीक्षित के पास भी 7 दिन की अवधि थी। परीक्षित को कथा में रस इसलिए लगा क्यूं कि राजा की मौत निकट थी 7 वे दिन । जिसकी मौत निकट हो उसका मन कथा में ओर भजन में लगेगा। राजा ने शुकदेव जी से प्रार्थना की आप मेरी मुक्ति करो मेरे पास 7 दिन का समय बचा है। राजा ने अनीति के धन का मुकुट पहना इसलिए उसकी बुद्धि बिगड़ी और ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाला और ऋषि के बेटे को जब पता चला तो उसने राजा को श्राप दिया। संतों के आशीर्वाद से मती सही बनी रहती है तभी व्यक्ति प्रगति कर सकता है। कर्म की गति गहन है। कर्म करते समय सभी को ध्यान रखने की जरूरत है । पहले एक धृतराष्ट्र था,एक गांधारी थी परन्तु आज के समय में घर घर में गांधारी मिलेगी जो अपने संतानों की गलतियों पर पर्दा डाले। गलती घर का एक व्यक्ति करता परन्तु सजा सभी पाते । आगे उत्तानपाद की दो रानी होती है सुरुचि और सुनीति। सुनीति ने अपने बेटे ध्रुव को अच्छे संस्कार दिए तभी बालक 5 वर्ष की उम्र में भक्ति करने को चलता है। ध्रुव को रास्ते में नारद जी मिलते हे ओर कहते हे बेटा तेरी उम्र तो अभी खेलने की हे तू अभी से भक्ति की ओर क्यूं चला परन्तु बालक कहता हे भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती। बालक की इस बात से नारद जी प्रसन्न होते हे ओर कहते तुझे प्रभु अवश्य मिलेंगे। नारद जी बालक को मंत्र दीक्षा देते है? नमो भगवते वासुदेवाय और इसी मंत्र को ध्रुव जी जाप करते हे भगवान विष्णु बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें जंगल में दर्शन देते है।

विठ्ठल दास ने बताया कि रविवार को कथा में खेतान अग्रवाल, राजेश अग्रवाल,विनोद अग्रवाल,शिव भगवान अग्रवाल, गौरीशंकर, प्रकाश कुमार, नारायण त्रिवेदी आदि उपस्थित रहे।

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