वाइफ को दुखी करके लाइफ सुखी नहीं हो सकती, पत्नी को कार की नहीं, तुम्हारे प्यार की जरूरत है : राष्ट्रसंत पुलक सागर

वाइफ को दुखी करके लाइफ सुखी नहीं हो सकती, पत्नी को कार की नहीं, तुम्हारे प्यार की जरूरत है : राष्ट्रसंत पुलक सागर
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उदयपुर । सर्वऋतु विलास स्थित महावीर दिगम्बर जैन मंदिर में राष्ट्रसंत आचार्यश्री पुलक सागर महाराज ससंघ का चातुर्मास भव्यता के साथ संपादित हो रहा है। शनिवार को टाउन हॉल नगर निगम प्रांगण में 27 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव के सातवें दिन नगर निगम प्रांगण में विशेष प्रवचन हुए। शनिवार को नगर निगम प्रांगण में राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया ने आचार्य पुलक सागर महाराज के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।

चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फान्दोत ने बताया कि शनिवार को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, प्रसिद्ध उद्योगपति शशिकांत खेतान, अतिरिक्त महाधिवक्ता जोधपुर प्रवीण खंडेलवाल, संभागीय अध्यक्ष वैश्य समाज अनिल नाहर, पूर्व प्रांतपाल लायंस क्लब संजय भंडारी, हुमड़ समाज अध्यक्ष रमेश शाह, पूर्व जीतो महामंत्री धर्मेश रेखा नवलखा एवं श्री लक्ष्मण भावना शाह थे । मंगलाचरण णमोकार ग्रुप उदयपुर ने किया । इस अवसर पर विशेष गुरु-वंदना, बच्चों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया और अपनी कला के माध्यम से गुरु भक्ति को प्रस्तुत किया। मंच पर प्रस्तुत किए गए मंगलाचरण नृत्य एवं भजन में गुरु के जीवन, त्याग, तपस्या और मार्गदर्शन के प्रसंगों को इतनी भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया कि पूरा वातावरण भक्ति रस में डूब गया।

चातुर्मास समिति के पमर संरक्षक राजकुमार फत्तावत व मुख्य संयोजक पारस सिंघवी ने बताया कि ज्ञान गंगा महोत्सव के सातवें दिन आचार्य पुलक सागर महाराज ने कहा परिवार को जीना एक बहुत बड़ी साधना है । परिवार को आदर्श परिवार बनाना किसी संत साधना से कम नहीं है । ईंट पत्थरों से मकान बन सकता है, लेकिन घर नहीं बन सकता । एक इंजीनियर मकान का नक्शा बना सकता है, लेकिन मैं पुलकसागर आपके घर का नक्शा मै बदल सकता हूं । हजारों के घर बसाने का काम हमें दिया हुआ है, महावीर के उद्देश्यों पर चलते हुए इन निर्जीव मकानों को सजीव घर बनाने का प्रयास कर रहा हूं । मेरे पास कुछ ईंटें है जो यहां से आप लेकर जाओ और अपने मकान को अच्छा घर बनाओ । जिस परिवार में तुम पैदा हुए हो, आपके जीवन अंतिम सांस भी उसी घर में हो । जिस परिवार के सदस्य एक दूसरे से बात नहीं करें वह घर श्मशान के समान हुआ करता है । अफसोस है आदमी अपने परिवार से बात नहीं करता, पड़ोसी से बात कर लेगा, लेकिन अपने घर में हालत नरक जैसे है । मेरा प्रवचन मंगलाचरण से शुरू होता है, तो तुम्हारी सुबह की शुरुआत भी मुस्कुराहट के साथ होनी चाहिए । जीवन हंसने के लिए है, जीवन मुंह बनाने के लिए नहीं है । चेहरा बनाना भगवान का काम है, लेकिन मुस्कुराना तुम्हारा काम है । मेरे पास तुम बैठो या ना बैठो, परिवार में छोटे छोटे बच्चों के साथ खेल लिया करो । बच्चे और संत दोनों एक जैसे होते है, जिनके मन में कोई राग द्वेष नहीं होता । सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम का भोजन परिवार के साथ खाओ, रोजाना घर में दिवाली जैसा माहौल रहेगा । जिस घर में रोज उत्सव होते है, उसी घर में महोत्सव होते है । जिस मंदिर में 1 घंटे रहना है, उसे इतना पवित्र बनाते हो, तो जिस घर में पूरे दिन रहते हो तो उसे पवित्र क्यों नहीं बनाते हो । पति से वक्त की उम्मीद रखती है, परिवार में थोड़ा सा वक्त दिया करो, आजकल इंसान कमाई करने के चक्कर में वक्त देना कम हो गया है । जितना सम्मान अपने पड़ोसी को देते हो, उतना धन्यवाद और सम्मान अपनी पत्नी को भी देना शुरू कर दो, जीवन और घर स्वर्ग बन जाएगा । हर अच्छे काम में का धन्यवाद देना शुरू कर दो, हम बाहर शिष्टाचारी बने रहते है और घर में भ्रष्टाचारी बन जाते है । ये नारी अपमान की पात्र नहीं, ये सम्मान की पात्र हुआ करती है ।

चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रकाश सिंघवी व प्रचार संयोजक विप्लव कुमार जैन ने बताया कि आचार्य ने कहा कि दिवाली पर लक्ष्मी की पूजन करते हो, कभी कभी अपने घर की लक्ष्मी की भी इज्जत कर लिया करो, एक नारी अपने जीवन में कितने रिश्ते निभाती है, कभी मां, कभी पत्नी, कभी बहु । दूसरे की बेटी को घर में लाकर बहू बनाना आसान है, लेकिन उसे घर की लक्ष्मी बनाना मुश्किल है । ये पत्नी पैर की जूती नहीं है, ये घर का स्वाभिमान है । घर में जब भी प्रवेश करो तब अपने काम हो वही छोड़ कर प्रवेश करो जहां तुम जूते खोलते हो । घर में तुम्हारा कोई क्लाइंट, कोई पेशेंट या कोई ग्राहक इंतजार नहीं कर रहा, घर में तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है । इसलिए पत्नी को समय दें, प्रेम पूर्वक बात करें क्योंकि सुख हो या दुख तुम्हारी पत्नी ही सबसे पहले तुम्हारे साथ खड़ी हुई मिलेगी ।

इस अवसर पर विनोद फान्दोत, राजकुमार फत्तावत, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, शांतिलाल नागदा सहित उदयपुर, डूंगरपुर, सागवाड़ा, साबला, बांसवाड़ा, ऋषभदेव, खेरवाड़ा, पाणुन्द, कुण, खेरोदा, वल्लभनगर, रुंडेडा, धरियावद, भीण्डर, कानोड़, सहित कई जगहों से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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