परपदार्थों को अपना न मानकर उनसे विमुख होकर, परिग्रह त्याग कर निज में स्थित होना है आकिंचन्य धर्म - राष्ट्रसंत पुलक सागर

उदयपुर । राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर ससंघ का चातुर्मास सर्वऋतु विलास मंदिर में बड़ी धूमधाम से आयोजित हो रहा है । इसी श्रृंखला में शुक्रवार को नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म दिवस मनाया गया । राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर के सानिध्य में टाउन हॉल में पाप नाशनम शिविर के अंतर्गत 700 शिविरार्थियों ने एक जैसे वस्त्र पहन कर शिविर में भाग लिया, और संगीतमय पूजा एवं धर्म आराधना की।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फांदोत ने बताया कि पहली बार आचार्य पुलक सागर महाराज के सानिध्य में दिगम्बर समाज के सभी पंथों का पर्युषण पर्व मनाया जा रहा है, कार्यक्रम की श्रृंखला में प्रात: 5.30 बजे प्राणायाम, प्रात: 7.30 बजे अभिषेक हुआ, उसके बाद शांतिधारा एवं पूजन सम्पन्न हुई । प्रात: 9.30 बजे आचार्यश्री का विशेष प्रवचन उत्तम तप धर्म दिवस पर हुआ, जिसमें आचार्यश्री ने कहा कि त्याग के पश्चात् आकिंचन्य धर्म की अनुपालना का विधान है। प्रश्न उठ सकता है कि जब सब कुछ त्याग किया फिर तत्त्व रूप आत्मा में रमण करने में क्या बाधा है। आगम में इस प्रश्न का समाधान भी किया गया है कि जो आपने त्याग किया है वह वस्तुत: आपका था ही नहीं और पर वस्तु के त्याग करने में अथवा पर वस्तु को ग्रहण करने में आपका अपना क्या योगदान रहा। वस्तुत: जिस भावना-प्रतीति-अनुभूति से ग्रहण या त्याग किया जाता है उसी भावना को मन से निकालने का पुरुषार्थ ही अकिंचन भाव है। आत्मा एकल, एकान्त, अनन्य और स्वतंत्र है, यही आकिंचन्य धर्म है। सुख दुख में समत्व भाव ही आकिंचन्य है। जीवन में अध्यात्म से बड़ा सहारा कोई नहीं है। संसार में जब तुम्हें कोई सँभालने वाला और सहारा देने वाला न हो, जब तुम्हारे आँसू पोंछने वाला कोई नहीं होगा तब अध्यात्म ही तुम्हें सहारा देगा और तुम्हारे आँसू पोंछेगा। उत्तम आकिंचन्य धर्म का पालन करते हुए जीवन में अहम भाग सदा के लिए त्यागने का प्रयास होना चाहिए। हिन्दू धर्म को अंगीकार करने वाले साधक गीता सार और जैन धर्मानुरागी समयसार को अवश्य पढ़ें। इनके पठन और स्वाध्याय से मृत्यु सुधर जाएगी। जीवन में केवल एक सूत्र सदैव स्मृति में रखें- जगत में किंचित मात्र भी मेरा नहीं है।
चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रकाश सिंघवी एवं प्रचार संयोजक विप्लव कुमार जैन ने बताया कि प्रवचन के बाद 10.30 बजे सिंधी धर्मशाला में सभी साधकों का भोजन, दोपहर 12.30 बजे सामायिक मंत्र जाप, दोपहर 2 बजे धार्मिक प्रशिक्षण, शंका समाधान, तत्व चर्चा हुई । सायं 7.30 बजे गुरु भक्ति एवं श्रीजी की महाआरती हुई । उसके बाद प्रतिदिन रात्रि 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुए । इस अवसर पर विनोद फान्दोत, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, सेठ शांतिलाल नागदा सहित सम्पूर्ण उदयपुर संभाग से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
