पशुधन के स्वास्थ्य एवं आय में गिरावट का एक प्रमुख कारण है- बाह्य परजीवी

उदयपुर, । बाह्य परजीवी न सिर्फ पशु की सेहत बल्कि उसकी प्रजनन और उत्पादन क्षमता को भी प्रभावित करते है। समय समय पर इन पर नियंत्रण करना आवश्यक है। यह सम्बोधन पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान के उपनिदेशक डॉ. सुरेन्द्र छंगाणी ने संस्थान में आयोजित संगोष्ठी में दिये। डॉ. छंगाणी ने कहा कि पशुओं के शरीर के ऊपर चिचडें टीक्स, जूं, इत्यादि होने से पशुओं में बैचेनी, रक्त की कमी एवं तनाव बढ़ने के कारण पशुओं में कमजोरी होने से उनकी गर्भधारण क्षमता, उत्पादन एवं रोग प्रतिरोधकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कई बार इन बाह्य परजीवियों की बहुतायात होने पर पशुओं के मरने की भी आशंका रहती हैं। पशुओं में रक्त परजीवी रोगों के किटाणुओं के वाहक के रूप में यह चिचडों, टिक्स मक्खियां, जूं कार्य करती हैं जिससे रक्त परजीवी रोग तीव्रता से दूसरे पशुओं में फैलता हैं। श्वानों में प्रायः इन परजीवी के कारण खुजली एवं त्वचा रोग देखने को मिलते है। यह संक्रामक रोग गली मोहल्ले के कुत्तो में तीव्रता से फैलता हुआ दिखाई देता है। ऐसा अनुमान है कि भारत वर्ष में प्रति वर्श इन बाह्य परजीवियों के कारण पशुपालकों को उत्पादन में करोड़ों रूपयों का नुकसान होता है। उपयुक्त पशु प्रबन्धन कर आर्थिक नुकसान को रोका जा सकता हैं। डॉ. पदमा मील ने कहा कि अस्वच्छ पशुगृह, नम मिट्टी, कीचड़, भरे स्थान पर बाह्य परजीवियों की संख्या तीव्रता से बढ़ती है। पशुपालकों को अपने पशुओं को इन बाह्य परजीवियों से मुक्त रखने एवं पशुगृह की साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहियें एवं मिट्टी में चूना पाउडर डालकर फर्श पर बिछाना चाहिए ताकि परजीवियों को नियंत्रित किया जा सके। इन परजीवियों से पशुओं की प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन क्षमता दोनों पर बूरा प्रभाव पडता है। अतः इनको नियत्रित किया जाना भी अति आवश्यक है। संस्थान के डॉ. ओमप्रकाश साहू एवं विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखें।
