जिनके सुसंस्कार प्रबल होते वह अपना संतुलन नही खोता- जिनेन्द्र मुनि
गोगुन्दा। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के स्थानक भवन में आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए जिनेन्द्रमुनि ने कहा कि जीवन रूपी वृक्ष को पल्लवित करने के लिए संस्कार बीज है।खेत उतपन्न कपास मानव की लज्जा ढकने में समर्थ होते है। खेत मे बिखरे अनाज के कण मानव की क्षुधा शांत नही कर सकते। कपास को संस्कारित करना होगा। सुपाच्य बनाना होगा। संस्कारित हुए बिना अन्न के कणों को खा जाने पर वैध की शरण मे जाना पड़ता है। जिनेन्द्रमुनि ने कहा संस्कार का जरा भी तिरस्कार न करे। यदि संस्कार सुसंस्कार है तो उनका परिणाम आत्मा में,जीवन में उज्जवलता लाएगा और यदि वे कुसंस्कार है तो उनके परिणाम में आत्मा को पीड़ा झेलनी पड़ेगी। संत ने कहा जिनके सुसंस्कार प्रबल होते है, वह सुसंस्कारी वातावरण में भी अपना संतुलन नही खोता।
प्रवीण मुनि ने कहा हमे अपनी संस्कृति और आपने आदर्शों को भूलने भुलाने की भूल नही करनी चाहिए।संत ने कहा कि आधुनिकता या तथाकथित प्रगतिवाद के नाम पर किसी का अंधानुकरण करके विकृतियों का प्रवेश नही होना चाहिए। रितेश मुनि ने कहा आप हंस रहे है और हंसकर टालने की आवश्यकता नही है। हमे जागरूकता पूर्वक विकृतियों के प्रतिकार एवं संस्कारो के प्रचार प्रसार व स्वीकार के लिए अपने आपको भीतर के तेजस्वी संकल्पों के साथ तैयार रहना है। प्रभातमुनि ने कहा बालक के जीवन मे जो विकृतियां घर करती है।उसके मूल में हमारी अपनी विकृतियों एवं विकृत वातावरण का प्रभाव होता है।