शिक्षा भवन चौराहा स्थित चौगान मंदिर मेें हुए धार्मिक प्रवचन

शिक्षा भवन चौराहा स्थित चौगान मंदिर मेें हुए धार्मिक प्रवचन
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उदयपुर, । जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज आदि ठाणा 5 का अम्बामाता स्कीम से विहार कर शिक्षा भवन चौराहा स्थित पद्मनाभ स्वामी जैन तीर्थ चौगान मंदिर में प्रवेश हुआ।

कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि चौबीसी के अंतिम तीर्थकर श्री महावीर स्वामी एवं आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर पद्मनाभ स्वामी के च्यवन कल्याणक निमित्त भारवाही स्तुतिओं के माध्यम से च्यवन कल्याणक भावयात्रा का आयोजन हुआ। शैलेश भाई संगीतकार ने सभी को भक्ति संगीत के साथ भावविभोर किया।

जैनाचार्य ने भगवान महावीर एवं पद्मनाभ स्वामी के जीवन चरित्र पर मार्मिक प्रवचन देते हुए कहा कि दुनिया में लोकप्रसिद्ध लोगों के जीवन चरित्र उनके जन्म से लिखे जाते है, परंतु तीर्थकर लोकोत्तर महापुरुष होने से उनके जीवन चरित्र उनकी आत्मा के समकित की प्राप्ति के भव से लिखे जाते है। भगवान महावीर के समकित की प्राप्ति के बाद 27 भव हुए। प्रथम भव में वे ग्रामचिंतक नयसार के रूप में थे। राजा की आज्ञा से लकडो की पसंदगी के लिए राजसेवकों के साथ वे जंगल में गए थे। भोजन के समय पर उनके मन में परोपकार का शुभ भाव पैदा हुआ। यदि कोई साधु पुरुषों का सत्संग हो जाय तो उन्हें दान देकर में भोजन करूं।" इस शुभ भाव को अमल में लाते हुए उसने पेड पर चढक़र देखा। किसी भी सहायता से रहित कुछ मुनि भगवंत जंगल में रहे थे। हर्षित होकर उन्हें दानदेकर जंगल पार करने का रास्ता बताया। तब इतने छोटे सत्संग से मुनि भगवंत ने उसे भवजंगल को पार करने का रास्ता बताया। बस वहीं से उनकी आत्मा की प्रगति शुरू हो गई। उनकी आत्मा ने समकित प्राप्त किया । समकित का अर्थ है विवेक ज्ञान। आत्मा और शरीर भिन्न है। में शरीर नहीं लेकिन आत्मा हुं।' इस विवेक ज्ञान की प्रतीति । यदि यह विवेक ज्ञान आत्मा के भीतर पैदा हो जाय तो जीवन शैली बदले बिना नहीं रहती है। दुनिया के अधिकांश लोग मात्र शरीर केन्द्रित जीवन जी रहे है। 24 घण्टे के दिन में 24 मिनीट भी आत्मा के लिए नहीं होती है।. सममित की प्राप्ति के बाद जीवन आत्म-केन्द्रित हो जाता है। इस पंचम काल में हमारी आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती है, परंतु मोक्ष के रिजर्वरेशन स्वरूप समकित अवश्य प्राप्त कर सकती है। समकित की प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय सद्गुरु का सत्संग है। अत: हमें भी अपने आत्मीक उत्थान के लिए सद्गुरु का सत्संग करना ही चाहिए। चातुर्मास सत्संग की मौसम है। सद्गुरु का संग पाकर उनके उपदेशों को आचरण में लाने का प्रयत्न करना चाहिए।

27 भवों में अनेक उतार चढाव के बीच 25वे नंदन ऋषी के भव में एक लाख वर्ष तक संयम जीवन के पालन के साथ 11,80,645 मासक्षमण तप और सभी जीवों के आत्मकल्याण की शुभ भावना की। इस शुभभावना के फलस्वरूप 27 वें भव में वे तीर्थंकर वर्धमान महावीर बने । पूर्व के देव भव से उनका देवानंदा माता की कुक्षी में अवतरण को च्यवन कल्याणक कहा जाता है। उनके पांच कल्याण के समय में के सभी जीवों को सुख प्राप्त होता है, यावत् घोर दुख को सहते नारकों को भी क्षण भर के लिए शांति मिलती है।

कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया 2 व 3 जुलाई को प्रात:9.30 बजे प्रेरणादायी प्रवचन होगा। चातुर्मास प्रवेश मालदास स्ट्रीट में 4 जुलाई को है। इस अवसर पर पद्मनाभ स्वामी जैन मंदिर के अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र हिरण, श्रीसंघ के महामंत्री कुलदीप नाहर, देशबंधु जैन, राजेन्द्र कोठारी, फतेहसिंह मेहता, राकेश चेलावत, राजेन्द्र करणपुरिया, जसवंतसिंह सुराणा, भोपालसिंह सिंघवी आदि मौजूद रहे।

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