साहित्यकार के लिए स्वाध्याय व मौलिक लेखन अति महत्वपूर्ण– हरिहर
उदयपुर। लोक जनमानस में विपुल साहित्य बिखरा पड़ा है जो दैनिक जीवन की छोटी-मोटी घटनाओं एवं वार्तालाप में देखने को मिल जाता है। एक साहित्यकार को चाहिए कि वह उसका अवलोकन करें एवं भरपूर स्वाध्याय करने के तत्पश्चात स्वयं के मौलिक लेखन के माध्यम से साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दें। यह विचार अखिल भारतीय साहित्य परिषद के चित्तौड़गढ़ प्रांत अध्यक्ष विष्णु शर्मा ‘हरिहर’ ने रविवार को अपने उदयपुर प्रवास के दौरान परिषद के पदाधिकारियों की बैठक में व्यक्त किए। बैठक में प्रांत उपाध्यक्ष डॉ रवीन्द्र उपाध्याय, प्रांत महिला सचिव रेखा लोढ़ स्मित, महानगर इकाई अध्यक्ष किरण बाला किरण, महानगर संरक्षक चंद्रकांता बंसल, जिला इकाई अध्यक्ष ओम प्रकाश शर्मा, गौरीकांत शर्मा सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।
हरिहर ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर समाज को दिशा देने का कार्य भी करता है। त्याग, समर्पण एवं राष्ट्रप्रेम के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होने कहा कि साहित्य में समाज को जोड़ने एवं राष्ट्रवाद के विचार को पुष्ट करने की क्षमता है। साहित्य सृजन के दौरान एक साहित्यकार को इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि उसके लिखे साहित्य का समाज एवं राष्ट्र के लिए विकास में सकारात्मक प्रभाव पड़े। उन्होने कहा कि स्कूल-कॉलेज में साहित्यिक विभूतियों के साथ ही महापुरुषों की जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए जानें चाहिए जिससे नई पीढ़ी को साहित्य सृजन की प्रेरणा मिले।
परिषद की महानगर इकाई अध्यक्ष किरण बाला किरन ने बताया कि बैठक में प्रांत उपाध्यक्ष रवींद्र उपाध्याय ने परिषद के गठन के उद्येश्य एवं इसकी रीति नीति के बारे में जानकारी दी। उन्होने कहा कि अनवरत लेखन से साहित्यकार की पहचान बनती है और उसके लेखन का उद्देश्य पूर्ण होता है। सतत लेखन के साथ ही इसका समय पर प्रकाशन भी अति आवश्यक है। संगठन के विस्तार पर बात करते हुए प्रांत महिला सचिव साहित्यकार रेखा लोढ़ा स्मित ने कहा कि साहित्यिक अभिरूचि वाले नई पीढ़ी के बच्चों को जोड़कर उन्हे मंच प्रदान करना चाहिए। बैठक के दौरान संगठन की गतिविधियों, नियमित एवं विशेष कार्यक्रमों तथा समाज के प्रत्येक तबके के साहित्यिक अभिरूचि वाले व्यक्तियों तक पहुंच बनाते हुए उन्हे जोड़ने की बात कही गई।