तपस्या से इंद्रियों और मन को नियंत्रित किया जाता है : जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज

तपस्या से इंद्रियों और मन को नियंत्रित किया जाता है : जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज
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उदयपुर। जैन धर्म में तप का विशेष महत्व है। तपस्या से इंद्रियों और मन को नियंत्रित किया जाता है । उन्मार्ग से हटा कर सन्मार्ग से जोड़ा जाता है । तपहीन निरंकुश मन इंद्रियों को उत्तेजित करता है और इंद्रियां क्षणिक सुख पाने की लालच में पाप कृत्यों में डूब जाती हैं । कर्मों का बंधन करती हैं । जिससे चौरासी लाख जीव योनियों में आत्मा को बार बार जन्म मरण करते हुए दुख दुर्गतियों में भटकना पड़ता है । जबकि तपस्या से मन को संयमित और इन्द्रियों को नियंत्रित करने का बल मिलता है । जिससे आत्मा की शुद्धि और कर्मों की निर्जरा होती है । उक्त विचार आयड स्थित प्राचीन जैन तीर्थ में पधारे गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज ने आत्म वल्लभ आराधना भवन में प्रवचन के दौरान व्यक्त किए ।

श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में महावीर स्वामी के 44वें पट्टधर , तपाबिरुदधारक आचार्य जगच्चंद्र सूरि महाराज की तपोभूमि आयड़ तीर्थ उदयपुर में जिनशासन के सर्वोच्च वर्षीतपाराधक, तप चक्रवर्ती, वचनसिद्ध गुरुदेव की पुण्यस्मृति में समर्पित विजय वसंत सूरि आयंबिलशाला का भव्य उद्घाटन गुरुवार को सम्पन्न हुआ।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि कार्यक्रम में पंजाब केसरी पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति, आयड तीर्थोद्धारक तथा पद्मश्री विभूषित आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर महाराज के सान्निध्य में आयंबिलशाला के विभिन्न स्तंभ एवं कमरों का निर्माण किया गया। जिसमें आयंबिलशाला के लाभार्थी में रत्न स्तंभ का निर्माण किशोर शेषमल कारसिया पोरवाल, बेड़ा पुणे द्वारा, स्वर्ण स्तंभ का निर्माण शांताबाई सूरजमल चौधरी मन्डार, हाल हैदराबाद द्वारा, स्वर्ण स्तंभ का निर्माण महावीर कास्टिया, उदयपुर - जोधपुर द्वारा, रजत स्तंभ का निर्माण भरत कुमार पारसमल पालरेचा, मोकलसर हाल पुणे द्वारा तथा रजत स्तंभ का निर्माण परेश भाई रमेश शाह, बीजापुर हाल भायंदर, मुंबई द्वारा किया गया। वहीं आयंबिलशाला में कमरों का निर्माण लीला नाहर, शांता देवी नाहर, रमेश विद्या सिरोया, भगवती लाल प्रेमलता जैन, अभय उषा चतुर, उषा किरण नरेन्द्र सिरोहिया, प्रकाश बेन रणजीत लाल मेहता, दलपत सिंह दिलखुश भंसाली द्वारा किया गया।

नाहर ने बताया कि गुरुवार सुबह 8 बजे धूलकोट मंदिर से गाजे-बाजे के साथ आचार्य संघ का आयड़ तीर्थ में प्रवेश हुआ। धूलकोट स्थित जिनमंदिर से प्रवेश यात्रा का शुभारंभ हुआ । प्रवेश में माताएं बहने सिर पर मंगल कलश लेकर शामिल हुई । बैंड बाजों की सुरीली धुनों के साथ विभिन्न मार्गों से होकर प्रवेश यात्रा आयड जैन तीर्थ में पहुंची । वहां गोहुली करके गुरु भगवन्तों का प्रवेश करवाया गया । सर्वप्रथम गुरु भगवन्तों ने जिन मंदिरों में दर्शन वंदन किए। उसके बाद धर्मशाला नवनिर्मित छ - छ कमरों के जो दो नए विंग बनाए गए उनका उद्घाटन कमरों के लाभार्थी परिवारों द्वारा किया गया। कुलदीप नाहर ने गच्छाधिपति गुरुदेव के उपकारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और दानवीर लाभार्थी परिवारों का अनुमोदन किया । गच्छाधिपति गुरुदेव और साध्वी भगवंत को कांबली ओढ़ाई गई ।

सभी लाभार्थियों का तिलक , माला और स्मृति चिन्ह देकर बहुमान किया गया । मुनि मोक्षानंद विजय महाराज ने तपस्वी आचार्य श्रीमद् विजय वसंत सूरीश्वर के जीवन के प्रेरक प्रसंगों को जन समक्ष प्रस्तुत किया । साथ उन्होंने कहा कि साधु साध्वी आत्म कल्याण के साथ साथ लोक कल्याण के लिए पैदल विचरण करते हैं । किंतु सडक़ों पर पैदल चलते हुए आए दिन दुर्घटनाओं में कितने ही आचार्यों , साधु साध्वियों के देवलोकगमन हो जाने की खबरें मन को विचलित कर देती हैं । ऐसे में पद यात्रा की सुरक्षा हेतु संघ समाज को गहरा चिंतन करना बहुत जरूरी है ।

नाहर ने बताया कि आचार्य संघ सवीना पाश्र्वनाथ तीर्थ में शुक्रवार सुबह 8 बजे को मुनि वल्लभदत्त विजय फक्कड़ बाबा जैन धर्मशाला, मुनि अनेकांत विजय जन्मशताब्दी हॉल का करेंगे। कार्यक्रम का संचालनप जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे। इस अवसर पर उपाध्यक्ष भोपाल सिंह परमार, राजेन्द्र कोठारी, आर के चतुुर, गजेन्द्र भंसाली, सतीश कच्छारा, चतर सिंह पामेचा, राजेश जावरिया, राजेन्द्र जवेरिया, महावीर रांका, प्रताप बापना, रविन्द्र पंजाबी, नरेन्द्र मेहता, दिनेश भण्डारी, अनूप पारीवाला, चन्द्र सिंह सुराणा, ललित पगारिया, गोवर्धन सिंह बोल्या, चन्द्र सिंह बोल्या, अशोक धुपिया आदि का विशेष सहयोग रहा।

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