श्राद पक्ष आ गया, पर कागले हैं नदारद
उदयपुर। श्राद पक्ष के दिनो में प्रायः सुबह के समय सभी छतों पर आऔ-आऔ कागला आऔ की आवाज आसानी से सुनी जाती है, श्राद पक्ष तो आ गया किन्तु कागले नदारद है अर्थात् कौवे बिल्कुल नदारद हो चुके हैं लोगों को अपने श्राद्ध का अनुष्ठान गाय या अन्य पक्षियों को खिलाकर पूरा करना पड़ रहा हैं। यह जानकारी प्रशिक्षण संस्थान के उपनिदेशक डॉ. सुरेन्द्र छंगाणी ने दी। एक सर्वे के अनुसार वर्तमान में कौवों का घनत्व प्रत्ति एक वर्ग किमी. मात्र 15 ही है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है।
डॉ. छंगाणी के अनुसार इस विलुप्त होती प्रजाति का मुख्य कारण प्रदुषण ही है। कौवे सडी -गली एवं गंदगी को खाया करते हैं किन्तु आजकल कुडा करकट पोलिथीन में ही भरकर फेंका जाता है। शोध के अनुसार वर्तमान में मृत पशु के शरीर के मांस में कई प्रकार के रसायन पाये जाते है जिसके खाने से पक्षियों की किडनी खराब होने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त खेतों में अत्यधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों एवं कीट नाशक का उपयोग भी इनके विनाश का प्रमुख कारण है।
डॉ. छंगाणी के अनुसार हम सबके सम्मिलित प्रयासों से इस विलुप्त होती प्रजाति को बचा सकते है एवं पुनः घर की मुण्डेर पर आकर कौवे बैठ कर अपने कावं-कांव से आगन्तुकों के आने की या चिट्ठी आने की सूचना दे सकते हैं। झूठ बोले कौवा काटे कहावत भी अपना अस्तित्व बनाये रख सकती है।