तमाम प्रस्तुतियों में मंच पर साकार हुई विभिन्न प्रदेशों की लोक संस्कृति

उदयपुर। खचाखच भरे मुक्ताकाशी मंच पर दर्शकों में उस वक्त नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हो गया, जब पश्चिम बंगाल के राय बेंसे लोक नृत्य में नर्तकों ने शानदार एक्रोबेटिक युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। दरअसल, राय बेंसे पश्चिम बंगाल का एक पारंपरिक लोक नृत्य है, जो मुख्य रूप से बीरभूम, बर्धमान और मुर्शिदाबाद जिलों में किया जाता है। इसमें नर्तकों ने शौर्य और युद्ध कला का प्रदर्शन कर दर्शकों को खूब रोमांचित किया। बता दें, यह नृत्य शैली केवल पुरुषों द्वारा प्रस्तुत की जाती है। इसमें जोश, ताकत और तालमेल का खूबसूरत प्रदर्शन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया। यह प्रस्तुति शुक्रवार शाम उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर की ओर से आयोजित किए जा रहे दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव में दी गई। इसके साथ ही बंगाल के ही नटुआ नृत्य में मार्शल आर्ट की नृत्य शैली में प्रस्तुती देख दर्शक वाह-वाह कर उठे।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के प्रयागराज क्षेत्र के पारंपरिक ढेड़िया लोक नृत्य ने भी दर्शकों का दिल जीत लिया। इसमें नर्तकियों ने सिर पर मिट्टी का घड़ा (दीया रखकर) संतुलन का बेहतरीन प्रदर्शन किया तो शिल्पग्राम दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसमें गीत और नृत्य के तालबद्ध सामंजस्य ने तमाम सामयीन के दिलों को झंकृत कर यूपी की लोक संस्कृति से दर्शकों को रू-ब-रू कराया।
इस शाम की हर प्रस्तुति ने उत्सव की ‘लोक के रंग-लोक के संग’ थीम पर खरी उतरते हुए सुधी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। इनमें जम्मू के पारंपरिक डोगरी लोक नृत्य जगरना के साथ ही राजस्थान के सहरिया आदिवासी संस्कृति के सहरिया स्वांग डांस व सफेद आंगी गेर ने भी सभी का मन माेह लिया। उत्तराखंड के मीठी छेड़छाड़ वाले छापेली लोक नृत्य को दर्शकों ने खूब सराहा, तो सिर पर दीपक (समई) रख नऊवारी साड़ी पहनी नर्तकियों ने जब गोवा का प्रसिद्ध समई नृत्य किया तो बैलेंसिंग, हाव-भाव व लयबद्धता सामयीन को खूब पसंद आई। वहीं, त्रिपुरा के सिर पर बोतल रख बेमिसाल बैलेंसिंग के लोक नृत्य होजागिरी देख अभिभूत हुए दर्शकों ने खूब दाद दी। इनके साथ ही महाराष्ट्र के मल्लखंभ और मणिपुर की मार्शल आर्ट से लबरेज फोक प्रस्तुति थांग-ता ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। वहीं, छत्तीसगढ़ के पंडवानी ज्ञान (पांडवों की कथा) ने आध्यात्म के साथ जोश का संचार किया।
कार्यक्रम का संचालन मोहिता दीक्षित और यश दीक्षित ने किया।
‘हिवड़ा री हूक’ बना आकर्षण का केंद्र-
शिल्पग्राम उत्सव में बंजारा मंच पर चल रहे ‘हिवड़ा री हूक’ कार्यक्रम के छठे दिन शुक्रवार को भी मेलार्थियों ने खुद गाने, कविता आदि पेश कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए खब एंजॉय किया। वहीं को-ऑर्डिनेटर सौरभ भट्ट की प्रश्नोत्तरी ने कार्यक्रम को और रोचक बना दिया। क्विज में सही उत्तर देने वालों को हाथों-हाथ उपहार भी दिए जा रहे हैं।
तमाम थडों पर भी लोक रंजन-
शिल्पग्राम में विभिन्न थड़ों पर सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक अलग-अलग प्रस्तुतियां मेलार्थियों का भरपूर मनोरंजन कर रही हैं। इनमें शुक्रवार को मुख्य द्वार आंगन पर आदिवासी गेर व घूघरा-छतरी (मीणा ट्राइब), आंगन के पास बाजीगर, देवरा पर तेरहताली व भवई, बन्नी पर कुच्छी ज्ञान, सम पर नाद, भूजोड़ी पर बीन जोगी, पिथौरा पर गलालेंग (लोक कथा), पिथौरा चबूतर पर चकरी, बड़ा बाजार पर मांगणियार, बड़ा बाजार (नुक्कड़ पर) पावरी (महाराष्ट्र-गुजरात का कोकणा जनजाति का नाच), गाेवा ग्रामीण पर कठपुतली, दर्पण द्वार पर सुंदरी, दर्पण चौक पर सुंदरी की प्रस्तुतियों को देख दर्शकों ने खूब सराहा।
वहीं, शिल्पग्राम्र प्रांगण में विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए बहरूपिया मेलार्थियों रिझा रहे हैं। इसके अलावा प्रांगण में कई जगह स्थापित पत्थर के स्कल्पचर्स, खूबसूरत झोंपड़ों सहित कई स्थान मेलार्थियों के फेवरिट सेल्फी पॉइंट्स बन चुके हैं।
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आज (शनिवार) शाम के खास आकर्षण-
मुक्ताकाशी मंच पर शनिवार शाम के कार्यक्रम में गुजरात के धमाकेदार सिद्धि धमाल डांस के साथ ही तबला, पखावज, ढोलक, नगाड़ा, सारंगी, सितार जैसे वाद्ययंत्रों पर शास्त्रीय और लोक धुनों की प्रस्तुति ताल कचहरी, असम का बिहू और राजस्थान का कालबेलिया डांस आकर्षक का केंद्र होंगे। इनके अलावा सिक्किम के भूटिया लोगों का लोक नृत्य सिंघी छम भी रिझााएगा, जो हिम सिंह (शेर) के वेश में किया जाता है। वहीं, भपंग वादन की प्रस्तुति भी मन मोहेगी। इनके अलावा तमिलनाडु का कावड़ी कड़गम, पंजाब का भांगड़ा, ओडिशा का गोटीपुआ आदि लोक नृत्य भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे।
