लोभ से बचने का उपाय सिर्फ धर्म ध्यान है - राष्ट्रसंत पुलक सागर

उदयपुर । राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर ससंघ का चातुर्मास सर्वऋतु विलास मंदिर में बड़ी धूमधाम से आयोजित हो रहा है । इसी श्रृंखला में रविवार को चौथे दिन उत्तम आर्जव धर्म दिवस मनाया गया । राष्ट्रसंत आचार्य पुलक सागर के सानिध्य में टाउन हॉल में पाप नाशनम शिविर के अंतर्गत 700 शिविरार्थियों ने एक जैसे वस्त्र पहन कर शिविर में भाग लिया, और संगीतमय पूजा एवं धर्म आराधना की । चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विनोद फांदोत ने बताया कि पहली बार आचार्य पुलक सागर महाराज के सानिध्य में दिगम्बर समाज के सभी पंथों का पर्युषण पर्व मनाया जा रहा है, कार्यक्रम की श्रृंखला में प्रात: 5.30 बजे प्राणायाम, प्रातः: 7.30 बजे अभिषेक हुआ, उसके बाद शांतिधारा एवं पूजन सम्पन्न हुई । प्रात: 9.30 बजे आचार्यश्री का विशेष प्रवचन उत्तम शौच धर्म दिवस पर हुआ, जिसमें आचार्यश्री ने कहा कि लोभ सब पापों की जड़ है। जो धर्म लोभ की नींव पर खड़ा होता है वह क्षणभंगुर होता है। लोभ तृष्णा से जन्म लेता है। लाभ बढ़ने पर लोभ भी बढ़ता है। लोभ की पूर्ति सौ जन्मों में नहीं हो सकती। मन को माँजते रहिए। चेहरा नहीं अपना चरित्र दिखना चाहिए। लोभ पर विजय लोक पर विजय है। लोभ से बचने का उपाय सिर्फ धर्म ध्यान है। धर्म ध्यान और सत्संग से ही लोभ पराजित हो सकता है। आदमी नहीं दौड़ता। आदमी का लालच दौड़ता है। सफलता के लिए सिद्धान्तों की हत्या न होने दें। सफलता के लिए सिद्धांत से समझौता उचित नहीं है। जीवन चला जाए, चिंता नहीं। जीवन मूल्य अक्षुण्ण रहने चाहिए । जीवन की दौड़-भाग कुछ भी काम नहीं आती। परछाई किसी की मुट्ठी में कब आती है। इन्सान को केवल दो गज जमीन की ही तो आवश्यकता होती है। निःस्पृहता में बहुत बड़ा बल होता है। अनासक्त के दर्शन से वैराग्य उमड़ता है। धर्म अपरिग्रह, निःस्पृहता, अनासक्ति और वैराग्य से ही जीवित है। यह मानव तन मल से भरा हुआ घड़ा है। गंगा स्नान से शुद्ध नहीं होगा, मन पवित्र बनाओगे तभी इसकी शुद्धि संभव है। जहाँ विज्ञान सब प्रकार से विफल हो जाता है, वहीं से अध्यात्म प्रारंभ होता है। जीवन में एक समय ऐसा आता है जब धर्म, प्रभु स्मरण आवश्यक अनुभव होने लगता है। देह की ही नहीं मन की शुद्धि भी जरूरी है।
चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रकाश सिंघवी एवं प्रचार संयोजक विप्लव कुमार जैन ने बताया कि प्रवचन के बाद 10.30 बजे सिंधी धर्मशाला में सभी साधकों का भोजन, दोपहर 12.30 बजे सामायिक मंत्र जाप, दोपहर 2 बजे धार्मिक प्रशिक्षण, शंका समाधान, तत्व चर्चा हुई । सायं 7.30 बजे गुरु भक्ति एवं श्रीजी की महाआरती हुई । उसके बाद प्रतिदिन रात्रि 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुतियां हुई । इस अवसर पर विनोद फान्दोत, शांतिलाल भोजन, आदिश खोडनिया, पारस सिंघवी, अशोक शाह, शांतिलाल मानोत, नीलकमल अजमेरा, सेठ शांतिलाल नागदा सहित सम्पूर्ण उदयपुर संभाग से हजारों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
