कुम्भ: सत्य सनातन ज्योति प्रज्वलित!



कुम्भ में सत्य सनातन ज्योति प्रज्वलित,

न कोई ऊंच न नीच सभी हैं प्रफुल्लित।

इंसानी समुन्दर-सा हुआ यह आयोजन,

ये धर्म ध्वजा की पताका फहरे प्रयोजन।

यहाँ कोई किसी को जानता-पहचानता,

हम सबमें हैं आत्मीयतासा भाव जागता।

कुम्भ में सत्य सनातन ज्योति प्रज्वलित,

न कोई ऊंच न नीच सभी हैं प्रफुल्लित।

सही समझ रहें सब एक-दूजे की बोली,

हे प्रयाग संग-संग सभी हुए हमजोली।

आई ये सब के चेहरों पर मुस्कुराहट है,

ये नई सोच नवभारत की एक आभा है।

कुम्भ में सत्य सनातन ज्योति प्रज्वलित,

न कोई ऊंच न नीच सभी हैं प्रफुल्लित।

देश-दुनिया, विदेशी सनातनी को वंदन,

सकारात्मक ऊर्जा दे रहें माथे पे चंदन।

यहीं अपूर्व दिव्य-शक्ति का हैं आकर्षण,

त्रिवेणी तट पर अमृत रसपान विलक्षण।

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