तुम कितनी थी करीब...!



कल तक तुम कितनी थी करीब,

जमाना कह रहा था मुझे गरीब।

तुम्हें पा खुश हुआ जा रहा था,

खुशियों की सौगात ले रहा था।

बह रहा हूँ तेरी अदाओं के साये,

अभी मैंने क्या-क्या जख्म खाये।

कल तक तुम कितनी थी करीब,

जमाना कह रहा था मुझे गरीब।

यारों दुनिया तो शरीफों की थी,

मगर जख्म देतेे दरिंदों की थी।

मुझे गर इसका पूर्वाभास होता,

तेरी गली से दिल में न जाता।

कल तक तुम कितनी थी करीब,

जमाना कह रहा था मुझे गरीब।

बस इतना ही साथ क्यों दिया,

माना नहीं बन सका तेरा पिया।

रिया इतनी है जालिम मोहब्बत,

काश! ये आभास और सोहबत!

अब ये दिल तोड़ने की तोहमत।

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