पिरोने दो सुख-दुःख की माला...!

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पिरोने दो सुख-दुःख की माला...!
पिरोने दो उसे सुख-दुःख की माला,
क्यों? इसमें पडे़ हो काम करो आला।
कभी हो जाओ किसी बातों से आहत,
न होना शख्स से परेशां मिलेगी राहत।
गर कर्म तेरा होगा महीन सबसे बड़ा,
गम ना कर तू शिखर पर होगा खड़ा।
पिरोने दो उसे सुख-दुःख की माला,
क्यों? इसमें पडे़ हो काम करो आला।
बस, तू चलते रहना हमेशा साथ मेरे,
गुजर जाएगा वक्त मेरे संग ले फेरे।
जब मिल जाएगा ये साथ बनेगी बात,
कट जाएगा दिन, महक उठेगी रात।
पिरोने दो उसे सुख-दुःख की माला,
क्यों? इसमें पडे़ हो काम करो आला।
मन में तमन्नाओं के उजाले लंे साथ,
उड़ चलेंगे बिन पंख के भी बस दें हाथ।
सनम खाओं कसम ना होंगे कभी जुदा,
बिछड़ भी जाओ तो रहना सदा फिदा।
संजय एम तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर-452011 (मध्य प्रदेश)
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