मन ही मन कर लेती-संतोष...!

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एक लड़की मध्यम था परिवार,
नटखट व खूबसूरत दारोमदार।
ये यौवन न बन जाए अभिषाप,
माता-पिता सोच जाते हैं कॉप।
हो गई इक्कीस की कर दी शादी,
जिंदगी की शाम में हुई आबादी।
एक लड़की मध्यम था परिवार,
नटखट व खूबसूरत दारोमदार।
छह साल बनी दो बच्चों की माँ,
पूरा हुआ संसार बस गया जहॉ।
हो गई उम्र तीस वज्रपात पीस,
पति केंसर से ग्रसित ये है टीस।
एक लड़की मध्यम था परिवार,
नटखट व खूबसूरत दारोमदार।
मदद मांगने में वह हिचकिचाती,
जहॉ-तहॉ इल्तजा हाथ फैलाती।
घर में रहकर की सिलाई-कढ़ाई,
कभी चल जाता काम हुई कमाई।
एक लड़की मध्यम था परिवार,
नटखट व खूबसूरत दारोमदार।
बच्चों की शिक्षा दें सक्षम बनाती,
वह स्वयं दर-दर की ठोकरें खाती।
ये गरीबी कभी-भी लेती है आगोश,
मन ही मन वह कर लेती हैं संतोष।
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