अन्धा प्यार

अन्धा प्यार
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अन्धा प्यार

हमारे वजूद का जब माँ को हुआ अहसास था,

माँ के लिए वो दिन वो पल बहुत ख़ास था।

माँ के आँचल में मानो समाया सारा आकाश था

मन मयूर मुदित हुआ हिये में हर्ष-उल्लास था।

आँखों में उम्मीद नयी साँसों में सुवास था,

चेहरे पर चमक थी प्रीत का मन में वास था।

स्नेह से भर गया था अपनी माँ का वक्ष,

कल्पनाओं में माँ बनाने लगी हमारा अक्स।

माँ के मन की मुरादें आसमाँ तक उछलने लगी,

माँ एक-एक क़दम संभल कर चलने लगी।

जो चीज़ हमको भाती थी माँ वही चीज़ खाती थी,

हमारा वजूद माँ की सबसे बड़ी थाती थी।

हमारा वजूद हमारी माँ का एक सुनहरा सपना था,

आत्मा को आनंद देने वाला वो वजूद उसका अपना था।

उस एक पल के अहसास में माँ ने कई साल जीये थे,

हमारी ख़ातिर माँ ने न जाने कितने जतन किये थे।

हमारी सलामती के लिए माँ हर कष्ट झेलती रही,

हमारे मधुर ख़यालों में वो हमसे खेलती रही।

हमारे जन्म से जवानी तक के ख़्वाब वो बुनती रही,

हमारी हर धड़कन तक माँ अपनी सुनती रही।

एक हक़ीक़त से सपनों की शृंखला निकल पड़ी थी,

हमारी ख़ातिर माँ हर मुश्किल से लड़ी थी।

हमारे बोले बिना माँ हमारा मन जान लेती थी,

हमारी हर ख़्वाहिश को माँ पहचान लेती थी।

माँ अनपढ़ भले ही थी मगर मन पढ़ लेती थी,

माँ अपने सपनों में महल हमारा गढ़ लेती थी।

हमारे चंचल मन की जो ख़्वाहिश होती थी,

वही तो अपनी माँ की फ़रमाइश होती थी।

ख़ुशी ख़ुशी सह लेती थी माँ हमारी लातें,

लातें खाकर भी वो करती थी प्यारी बातें।

माँ ने नहीं देखा था हमारा रंग रूप आकार,

हमारे वजूद को माँ ने कर लिया स्वीकार।

बिन देखे ही माँ हमसे करने लगी दुलार।

इसी को कहते हैं अंधा होता है प्यार।

माँ के प्यार में रंग-रूप का आकर्षण नहीं होता है,

माँ के प्यार का कोई कारण नहीं होता है।

हर माँ का अन्धा होता है प्यार,

अपनी माँ का सच्चा होता है प्यार।

©️✍🏻...टीकम ‘अनजाना’, IAS जयपुर

M. No. 9414077899

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