रपट कहाँ लिखाऊँ मैं
अपना दर्द किसे बताऊँ मैं
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं।*
मुझसे झूठ ही बोला गया
खरोंट घाव का छोला गया।
मेरे दिल से खेला गया
दंड बेगुनाह पर पेला गया॥
दास्ताँ किसको सुनाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
सदा ही मुझको छला गया
मैं हाथ हवन में जला गया।
वादों से मुझको ठगा गया
आग अरमानों को लगा गया॥
इस आग को कैसे बुझाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
मिलता तनिक आराम नहीं
अपनी उपज के पूरे दाम नहीं।
महंगाई रुकने का नाम नहीं
मिलता हाथों को काम नहीं॥
अपना चूल्हा कैसे जलाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
इश्तिहारों में विकास बहुत है
उन्हीं का जो ख़ास बहुत हैं।
किसान मज़दूर निराश बहुत है
सूखे कंठ में प्यास बहुत है॥
कैसे प्यास मिटाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
जब घर हमारे कच्चे थे
वो दिन बहुत ही अच्छे थे।
लोग वचन के पक्के थे
अपने किरदार के सच्चे थे॥
वो दिन कहाँ से लाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
परिवार को दवाई चाहिए
बच्चों को पढ़ाई चाहिए।
दो हाथों को काम चाहिए
मुफ़्त नहीं अनाज चाहिए।
क्योंकर मुफ़्त का खाऊँ मैं।
*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*
©️✍🏻...‘अनजाना’