कलम बहुत बोलती है...
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यह कलम भी बहुत बोलती है,
शब्दों से सभी को टटोलती है।
ये राज दिलों के खोल देती है,
अंतस मन को भी टटोलती है!
सबके हृदय को झकझोरती है।
यह कलम भी बहुत बोलती है,
शब्दों से सभी को टटोलती है।
नहीं होता इसका कोई भी कद,
लिखने में ही रहती हरदम रत!
ना होती कोई हद ये है अनहद।
यह कलम भी बहुत बोलती है,
शब्दों से सभी को टटोलती है।
अब कागज की जरूरत नहीं,
*स्वरदूत हो गया सबका स्वामी!
बस यही है इसकी बड़ी खामी।
यह कलम भी बहुत बोलती है,
शब्दों से सभी को टटोलती है।
कलम की टंकार गूँज लगातार,
यूँ जब कभी पकड़ती रफ्तार !
झनझनाती सबके दिलों के तार।
(*स्वरदूत यानि मोबाइल)
संजय एम तराणेक
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