ज़िन्दगी जीने दो अपलक...!

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इस "धरा" पर जिसने भी पैर धरा,
पहले तो जीवन "जिया" फिर मरा।
सुख-दुख की संवेदना हुआ खड़ा,
जमाने की अवहेलना से खूब लड़ा।
डिग्रियों का तमगा ले शिखर चढ़ा,
तकनीक के अभाव में पीछे ही रहा।
इस "धरा" पर जिसने भी पैर धरा,
पहले तो जीवन "जिया" फिर मरा।
रोजगार की तलाश में दर-दर फिरा,
धूप में निकला लड़खड़ाकर गिरा।
आमजनों कोे दया आई पानी दिया,
फिर उठ खड़ा, रिज्यूम देकर बढ़ा।
इस "धरा" पर जिसने भी पैर धरा,
पहले तो जीवन "जिया" फिर मरा।
अब उसे लगी नौकरी संतोषजनक,
लड़कीवालों के कान में पड़ी भनक।
हो गई शादी, धूम-धाम से बेधड़क,
देख रहें हैं सितारे निहारते फ़लक।
बस, उन्हें ज़िन्दगी जीने दो अपलक।
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