अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: नारी तू नारायणी : घर की "दहलीज" से आसमान की "उड़ान"

नारी तू नारायणी : घर की दहलीज से आसमान की उड़ान
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प्रदीप कुमार वर्मा

वेद और पुराण सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णित देवी तुल्य महिमा। आबादी के गणित के लिहाज से आधी दुनिया। घर और परिवार के साथ देश और दुनिया की सेवा का दम। और समाज और राष्ट्र के विकास में पुरुषों के समान भागीदारी। अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक दो कुल तथा वंश को कृतार्थ करने वाली महिला की यही दास्तां है। नारी शक्ति की इसी सामर्थ्य और समर्पण को रेखांकित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी एक मौका है। महिला अधिकारों के लिहाज से आज का पावन यह दिन लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और लिंग आधारित हिंसा तथा भेदभाव जैसे मुद्दों पर मंथन के लिए एक मंच भी है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का उद्देश्य समाज में महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने के साथ ही किसी भी क्षेत्र में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के मकसद से मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास की बात करें तो, इसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी में हुई। आज यानि वर्ष 1908 में 08 मार्च को न्यूयॉर्क शहर में करीब 15 हजार महिलाओं ने काम करने की बेहतर परिस्थितियों, कम काम के घंटे, और वोटिंग के अधिकार की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था।

इसके बाद 1910 में डेनमार्क की समाजवादी नेता क्लारा ज़ेटकिन ने इस दिन को महिलाओं के सम्मान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा जेटकिन नाम की महिला के दिमाग में सबसे पहले आया था। उन्होंने अपना ये आइडिया 1910 में कोपनहेगन में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ़ वर्किंग वीमेन में दिया था। इस कॉन्फ्रेंस में 17 देशों की 100 महिला प्रतिनिधि हिस्सा ले रही थीं और सबने क्लारा के सुझाव का स्वागत किया था।

इसके बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्विट्जरलैंड में मनाया गया। इसका शताब्दी आयोजन वर्ष 2011 में मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस न केवल महिलाओं के योगदान और बलिदान का जश्न मनाता है, बल्कि लैंगिक समानता के लिए चल रहे संघर्ष की याद भी दिलाता है। यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में की गई प्रगति पर विचार करने और दुनिया भर में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने का दिन है। हालांकि यह भी सही है कि इस मामले में अभी दिल्ली दूर ही है।

महिला सशक्तिकरण के लिए आज के दिन महिलाओं के राष्ट्र और समाज के प्रति योगदान को याद किया जा रहा है। भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई एक प्रतीक के रूप में सामने आती हैं। वर्ष 1857 में देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी। अपने दम पर सफलता की नई इबारत लिखने वाली महिलाओं में स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू से लेकर पैरालंपियन अवनी लेखरा तक का नाम सामने आता है।

देश के कई नामचीन आर्थिक संस्थानों के शीर्ष पदों पर महिलाएं कार्यभार संभाल कर देश के विकास में अपना योगदान दे रही हैं। इनमें अरुंधति महाचार्य, शिखा शर्मा, नैनालाल किदवई एवं सावित्री जिंदल जैसे नाम शामिल हैं। कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान "कोरोना योद्धा" के रूप में महिला डाक्टरों, नर्सो, आशा वर्करों एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व समाजिक कार्यकर्ताओ ने अपनी सेवाएं दी। कोरोना टीकाकरण अभियान में भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।

समाज सेवा के क्षेत्र में नारी शक्ति के योगदान पर नज़र डालें,तो मदर टेरेसा ने दीन-दुखी एवं पीडितों की निस्वार्थ सेवा कर अपना योगदान दिया। वहीं, बालिका शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए श्रीमती सावित्रीबाई फुले का बहुत बड़ा योगदान है। प्रख्यात पर्यावरणविद मेधा पाटकर का पर्यावरण संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान है। हमारे देश में संसाधनों ओर सोच की कमी के बावजूद भी भारतीय महिला खिलाडियों में गीता फोगट, साक्षी मलिक, मिथालीराज, पीवी सिंधु, साईना नेहवाल, सानिया मिर्जा एवं मेरीकोम ने राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत में हमारे देश का नाम रोशन किया है।

आज के दौर में घर की दहलीज से बाहर निकाल कर महिलाएं रक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में नई उड़ान के जरिए आसमान की ऊंचाइयों को नाप रही हैं। भारतीय पुलिस सेवा में प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी कोश्रेष्ठ कार्य के लिए मेग्सेसे पुरस्कार दिया गया। कैप्टन शिवा चौहान नए दौर में नारी शक्ति का प्रतीक है। चौहान की दुनिया के सबसे ऊंचे और दुर्गम बेटल फील्ड सियाचिन में एक पहली महिला आर्मी ऑफिसर के रूप में तैनाती, महिलाओं की ताकत का परिचायक है। अग्नि मिसाइल के विकास में प्रमुख भूमिका निभाने वाली टेंसी थॉमस को ‘मिसाइल वुमेन’ के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार प्रकृति वार्ष्णेय भी आज के दौर में महिला सशक्तिकरण का दूसरा नाम है।

करीब तीन साल पूर्व 12 मई 2022 को प्रकृति दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय वेजिटेरियन महिला हैं। इसी प्रकार वन्य जीवविज्ञानी पूर्णिमा देवी बर्मन सारस पक्षी के संरक्षण से जुड़ीं है। साहित्य के क्षेत्र में भी देश और विदेश में महिलाओ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इनमे वरिस्ठ साहित्यकार अरुंधती रॉय को उनके उपन्यास के लिए प्रसिद्ध बुकर पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। इसके अलावा फिल्म एवं मनोरंजन के क्षेत्र में ऐश्वर्या रॉय, सुस्मिता सेन, लता मंगेशकर एवं श्रेया घोषाल आदि का महत्वपूर्ण योगदान है।

यह भी सत्य है कि पुरुषों की तरह ही महिलाओं का सशक्तिकरण शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, आर्थिक अवसरों और सामाजिक स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। सच्चे मायनों में नारी सशक्तिकरण का अर्थ जीवन के इन विविध क्षेत्रों में महिलाओं को उनके अधिकार, अवसर और समानता देना है। जिससे महिलाएं ना केवल स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें। बल्कि इसके साथ ही देश और समाज में अपनी पूर्ण क्षमता से भागीदारी निभा सकें। आज के दिन हमें यह संकल्प लेना ही होगा कि हम महिलाओं के सशक्तिकरण के विषय में अपने दृष्टिकोण को बदलें और उस पर अमल भी करें। जिससे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिया गया संकल्प सरकार हो और आधी आबादी को उसका पूरा हक मिल सके।

-लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।

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