कविता....."हिंदी संग प्रेम"
जान से ज्यादा भाती है हिंदी भाषा मुझे,
पग पग प्रेरित करती हैं हिंदी भाषा मुझे।
नई उमंग नया उत्साह पैदा करती है मुझ में,
मन मस्तिष्क में बैठ असर दिखाती है मुझ में।
अभिमान मुझ भाषा का, हर पल कुछ सिखलाती है,
कभी पतझड़ कभी बसंत, जीवन का रहस्य बताती है।
हिंदी है हिंदी भाषा का मौसम सदा सदाबहार,
नैनो से नैन शब्द से शब्द रसना से होगा उद्गार।
साहित्य कला संगीत का जीवन में रहता सहारा,
हर समस्या का समाधान ढूंढता जनमानस हमारा।
बिन अल्फाजों के हम रह नहीं सकते, बिना सीप जो मोती बन नहीं सकते।
बिन हिंदी के हम सह नहीं सकते, बिन हिंदी कि हम जी नहीं सकते।
आगाज करें हम सब हिंदी का हिंदी को आगे बढ़ाना है,
भारत की शान है हिंदी हिंदी का मान बढ़ाना है।
एक एक बन दीप जले रोशन यही आलम करना है,
टीकूड़ा और निखारे भाषा को यही सबका कहना है।
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कवि टीकम चन्द टीकूड़ा
हिन्दी व्याख्याता
गुरुकुल केसरी सीनियर सैकेंडरी स्कूल बांदनवाड़ा, जिला केकड़ी