अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा राष्ट्रधर्म विषय पर हुआ गोष्ठी का आयोजन

शाहपुरा (राजेन्द्र खटीक)। शाहपुरा-अखिल भारतीय साहित्य परिषद शाहपुरा द्वारा केशव प्रन्यास मधुकर भवन में साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय गीतकार बालकृष्ण जोशी 'बीरा' ने की व मुख्य अतिथि ओम प्रकाश सनाढ्य रहे।
गोष्ठी का शुभारंभ ओम प्रकाश सनाढ्य द्वारा सरस्वती वंदना 'वीणा वादिनी वर दे' से हुआ।
ओम माली 'अंगारा' ने 'देशहित दीपशिखा-से जलते, बाती बन बलिदान होते वीर' और राजस्थानी भाषा में 'ओछा मिनख सूं प्रितड़ी, रे भाई कदे करजे नाहीं' सुनाई। अशोक बोहरा ने 'राष्ट्रधर्म है केवल प्रगति, सविधान में दिए अधिकारों संग कर्तव्य भी निभाए' सरोज राठौड़ ने 'दुर्गा दुर्गति नाशिनी जय-जय', रीता धोबी ने 'जागे जागे भारत के सभी वीर जागे' गीत सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। ओम प्रकाश सनाढ्य ने आधुनिकता की अंधी दौड़ में समाज मे व्याप्त भ्रष्टाचार व नैतिक पतन पर आधारित 'संस्कृति का अंतर्द्वंद्व एक संस्मरण' सुनाया। बालकृष्ण जोशी 'बीरा' ने 'राष्ट्रधर्म है यही हमारा, देशहित में हो काम सारा', जयदेव जोशी ने 'राष्ट्र भक्त हूँ कहकर तुम आते हो, कुर्सी जैसे ही मिलती तुम देश भूल जाते हो', आशुतोष सिंह सोदा ने वीर रस की रचना 'नदी की धार के विपरीत चले, वे लोग कितने थे' सुनाकर गोष्ठी को ऊँचाई प्रदान की। डॉ परमेश्वर कुमावत 'परम' ने विशिष्ट ज्ञान के दाता है, जो भारत भाग्य विधाता है' और 'मैं धनोप माँ का लाड़ला, धनोप म्हारा काळज्या री कोर' गीत सुनाकर राष्ट्रधर्म विषय की सार्थकता सिद्ध की। कैलाश जाड़ावत ने 'मातृभूमि का कर्ज कर्म का कारण हूँ, इस जीवन का फर्ज धर्म का धारण हूँ' और राजस्थानी भाषा में 'हिल-मिल राजी रमळाँ रेवां' गीत सुनाया।
गोष्ठी के अंत में परिषद के अध्यक्ष तेजपाल उपाध्याय ने कहा है कि किसी भी राष्ट्र के संचालन के लिए धर्म की आवश्यकता होती है, धर्म का ह्रास राष्ट्र के पतन का कारण बन जाता है। पिछले दशकों में वामपंथी साहित्यकारों ने भारतीय संस्कृति को भरपूर नुकसान पहुंचाने का कार्य किया। देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए सनातन विरोधी पाठ पढ़ाया गया। जबकि सबसे प्राचीन राष्ट्र भारत में युवाओंको रामायण, महाभारत, गीता का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए था। उपाध्याय ने राष्ट्रधर्म विषय पर विचार-मंथन किया। गोष्ठी में सत्यनारायण सेन, प्रचारक केशवनारायण भी उपस्थित रहे।
