ब्रह्मलीन संत अमराव जी महाराज की प्राण-प्रतिष्ठा आज, श्रद्धालुओं में उत्साह

शाहपुरा, मूलचंद पेसवानी
शक्करगढ़ स्थित श्री संकट हरण हनुमत धाम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन का आयोजन अत्यंत आध्यात्मिक, भावपूर्ण और मनोहर रहा। कथा व्यास महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी जगदीश पुरी जी महाराज ने अपने मधुर, ओजस्वी और ज्ञानमयी वचनों से श्रद्धालुओं को श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं में ऐसे बांधा कि पूरा पंडाल भक्ति रस में सराबोर हो गया।
स्वामी जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि नन्हें कृष्ण की हर लीला में जीवन बदल देने वाला आध्यात्मिक संदेश छिपा है। माखन चोरी की नटखट लीला से लेकर ग्वालबालों संग आनंदोत्सव और यशोदा मैया की गोद में ठिठोली—प्रत्येक प्रसंग सरलता, प्रेम, निष्काम सेवा और आनंद का मार्ग दिखाता है। प्रवचन के दौरान पंडाल ‘नंदलाला’ की जयकारों से गूंज उठा।
बाद में स्वामी जी महाराज ने गिरिराज पूजन और गोवर्धन लीला का विस्तृत वर्णन करते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज की पूजा कर मानवजाति को प्रकृति-पूजन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इंद्र के अहंकार का नाश कर श्रीकृष्ण ने भक्त और भगवान के अटूट, निष्कपट और मधुर संबंध को स्पष्ट किया। गोवर्धन धारण का दृश्य जब स्वामी जी ने शब्दों में उकेरा तो पूरा पंडाल “गोवर्धनधारी कन्हैयालाल की जय” के घोष से गूंज उठा।
कथा के दौरान छप्पन भोग की भव्य झांकी भी सजाई गई। विविध नैवैद्य से सुसज्जित इस झांकी ने श्रद्धालुओं को अद्भुत आनंद प्रदान किया और पंडाल में भक्ति का भाव अपने चरम पर पहुँचा।
स्वामी पुरी महाराज ने कहा कि भागवत कथा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानव जीवन को दिव्यता की ओर ले जाने वाला मार्ग है। मनुष्य जब अहंकार त्यागकर सरलता और भक्ति को अपनाता है, तभी भगवान उसके जीवन में अवतरित होते हैं। कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। जहाजपुर विधायक गोपीचंद मीणा भी आयोजन में शामिल हुए।
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संत समागम में पहुंचे महापुरुष
दिव्य संत समागम में ऋषिकेश के महामंडलेश्वर स्वामी विजयानंद पुरी महाराज ने गहन, तत्त्वमय और जीवन परिवर्तित करने वाले उपदेशों से वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में परमात्मा के दो स्वरूप बताए गए हैं—विशेष और नि:विशेष। नि:विशेष स्वरूप सच्चिदानंद है, जो प्रत्येक जीव की आत्मा है, किंतु अज्ञान और माया के कारण जीव स्वयं को सीमित, दुखी और असहाय मान बैठता है।
उन्होंने कहा कि जीव की यह विस्मृति ‘आवरण’ और ‘विक्षेप’ शक्तियों के कारण है, जो व्यक्ति को वास्तविक स्वरूप से दूर कर संसार में भटकाती रहती हैं। आत्मा न जन्म लेती है, न मृत्यु—वह केवल सच्चिदानंद स्वरूप है। भगवान जीवों पर कृपा करने हेतु विशेष रूप अर्थात अवतार धारण करते हैं। दस प्रमुख अवतारों की लीलाओं का चिंतन अंतःकरण को शुद्ध कर मन को परमात्मा की ओर स्थिर करता है।
स्वामी विजयानंद पुरी महाराज ने कहा कि जब तक भगवान की महिमा का बोध नहीं होगा, भजन में मन नहीं लग सकता। संतों की संगति, शास्त्रों के वचन और सत्संग ही मन की मलिनता को दूर कर उसे ईश्वराभिमुख बनाते हैं। समागम में ओंकारेश्वर महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद गिरी महाराज भी उपस्थित रहे।
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ब्रह्मलीन संत की मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा आज
ब्रह्मलीन सद्गुरुदेव अमराव जी महाराज की स्मृति में आयोजित मूर्तिप्रतिष्ठा समारोह आज प्रातः 8:15 बजे से वैदिक विधि-विधान से आरम्भ होगा। मीडिया प्रभारी सुरेंद्र जोशी ने बताया कि यह अनुष्ठान वृंदावन के सुप्रसिद्ध आचार्य पंडित मुकेश शास्त्री के निर्देशन में शास्त्रोक्त विधियों के साथ संपन्न हो रहा है। मंत्रोच्चार, होम-हवन और पूजा-अर्चना से आश्रम परिसर दिव्यता, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठा है। श्रद्धालु इस ऐतिहासिक पावन क्षण के साक्षी बनने को उत्सुक हैं।
भजन संध्या
2 दिसंबर की रात्रि को विशेष भजन संध्या होगी, जिसमें निवाई के संगीत सम्राट स्वामी प्रकाशदास महाराज भजनों की सुरमयी प्रस्तुति देंगे। संगीत रसिक श्रद्धालु इस अलौकिक भजन संध्या के लिए उत्साहित हैं।
