बोरड़ा बावरियान पेड़ कटाई प्रकरण में छोटे अफसरों पर कार्रवाई, बड़े अधिकारी जांच से बाहर

बोरड़ा बावरियान पेड़ कटाई प्रकरण में छोटे अफसरों पर कार्रवाई, बड़े अधिकारी जांच से बाहर
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शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी

शाहपुरा क्षेत्र के बोरड़ा बावरियान वनक्षेत्र में हुए बबूल के पेड़ों की अवैध कटाई के मामले ने अब नया मोड़ ले लिया है। मामले में विभागीय स्तर पर की गई कार्रवाई पर अब सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि जांच की आड़ में निचले स्तर के कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया गया है, जबकि असली जिम्मेदार अधिकारी अब भी जांच से बाहर हैं।

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले हमने ही इस पूरे प्रकरण का खुलासा करते हुए बताया था कि वन क्षेत्र में सैकड़ों बबूल के पेड़ जेसीबी मशीनों से उखाड़ दिए गए, और बड़ी मात्रा में लकड़ी ट्रैक्टरों में भरकर ले जाई गई। स्थानीय लोगों की शिकायत पर मामला उछला तो वन विभाग हरकत में आया, लेकिन अब तक पेड़ कटाई की अनुमति और आदेश देने वाले का नाम तक सामने नहीं आया है।

मामले में सोमवार को मुख्य वन संरक्षक (अजमेर) ख्याति माथुर ने कार्रवाई करते हुए शाहपुरा के वन क्षेत्राधिकारी प्रभुराम धूण, सहायक वनपाल विश्राम मीणा और वनरक्षक शंकरलाल माली को निलंबित कर दिया है। विभाग का कहना है कि ये तीनों अधिकारी मामले में लापरवाही के दोषी पाए गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि पेड़ों की कटाई किसके आदेश पर हुई, इस पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।

सूत्रों के अनुसार, सहायक वनपाल द्वारा मौके पर तैयार किया गया मौका परचा और विभागीय स्तर पर दर्ज की गई प्राथमिकी अब तक धूल खा रही है। न तो उस रिपोर्ट पर कोई ठोस कार्रवाई हुई है और न ही उस व्यक्ति या ठेकेदार का नाम सामने आया है, जिसके माध्यम से पेड़ काटे गए।

खबर प्रकाशित होने के बाद विभाग के अधिकारी हरकत में तो आए, लेकिन उन्होंने इसे “विधि सम्मत कार्य” बताते हुए मामले को दबाने की कोशिश की। जब पत्रकारों ने उनसे इस संबंध में दस्तावेज मांगे, तो वे कुछ भी पेश नहीं कर सके। इसके बावजूद अब विभाग ने तीन छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराकर मानो अपने दामन को साफ दिखाने की कोशिश की है।

इस पूरे प्रकरण को लेकर शहर व गांव की जनता और सामाजिक संगठनों में रोष है। लोगों का कहना है कि अगर इतने बड़े स्तर पर पेड़ काटे गए, तो यह किसी बड़े अधिकारी की जानकारी के बिना संभव नहीं है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उपखंड अधिकारी को ज्ञापन देकर प्रदर्शन किया, और आरोप लगाया कि विभाग बड़े अधिकारियों को बचाने के लिए निचले कर्मचारियों पर कार्रवाई कर रहा है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह ‘वन माफियाओं’ और विभाग के कुछ अफसरों की मिलीभगत का नतीजा है, और जब तक इस पूरे प्रकरण की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से नहीं कराई जाएगी, तब तक सच्चाई सामने नहीं आएगी।

दूसरी ओर, भाजपा की ओर से इस पूरे मामले पर अब तक चुप्पी बनी हुई है। न तो किसी नेता ने बयान दिया और न ही किसी ने इस प्रकरण पर सवाल उठाया। इससे राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा है कि क्या भाजपा का यह मौन किसी समझौते की ओर इशारा करता है?

इधर, जब इस बारे में जिला वन अधिकारी से संपर्क किया गया, तो बताया गया कि वे “लंबी यात्रा पर” हैं और फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं। यह सुनकर लोगों में आश्चर्य है कि इतने बड़े मामले के बीच में भी अधिकारी छुट्टी पर कैसे जा सकते हैं।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बोरड़ा बावरियान क्षेत्र में लगभग 500 क्विंटल लकड़ियां अवैध रूप से काटकर ले जाई गईं, और जब वे विरोध करने पहुंचे तो उन्हें धमकाया गया। ग्रामीणों ने प्रशासन से इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।

फिलहाल, विभागीय कार्रवाई से अधिक राजनीतिक और जन दबाव बढ़ता जा रहा है। लोग पूछ रहे हैं-

“अगर पेड़ कटाई विधि सम्मत थी तो दस्तावेज कहां हैं?”

“अगर अवैध थी तो असली दोषी अब तक जेल से बाहर क्यों हैं?”

शाहपुरा में यह मामला अब ‘हरियाली हत्याकांड’ के नाम से चर्चा में है। सोशल मीडिया पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं कि विभाग ने सिर्फ दिखावे की कार्रवाई की है, ताकि जनता का गुस्सा शांत किया जा सके। अब देखना यह होगा कि सरकार और वन विभाग इस मामले की गहराई तक जाकर असली दोषियों तक पहुंचते हैं या नहीं।

फिलहाल, बोरड़ा बावरियान के जंगलों में सिर्फ पेड़ ही नहीं कटे, बल्कि जनता का भरोसा भी हिल गया है।

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