15 शाबान (शबे बरात) मग़फिरत व बरकत की रात कल
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जहाजपुर (मोहम्मद आज़ाद नेब) 15 शाबान की रात, जिसे शबे बरात कहा जाता है, इस्लाम में एक महत्वपूर्ण और फज़ीलत वाली रात मानी जाती है। इसे मग़फिरत (गुनाहों की माफी) और बरकत की रात कहा जाता है। इस रात में अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को कबूल करते हैं और गुनाहों को माफ करते हैं।
शाही जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुर्रहमान ने बताया कि इस रात में अल्लाह तआला अपनी रहमत के दरवाजे खोल देते हैं और बहुत से गुनाहगारों को माफ कर देते हैं। इस रात इंसानों के अगले साल का रिज़्क, मौत और तक़दीर के अहम फैसले किए जाते हैं। हदीसों के मुताबिक, हज़रत मुहम्मद सअस इस रात जन्नतुल बक़ी (मदीना के कब्रिस्तान) गए और वहां दुआ की। इसलिए इस रात कब्रिस्तान जाकर मरहूमीन के लिए मग़फिरत की दुआ करने की तरगीब दी जाती है। इस रात अल्लाह अपने बंदों की दुआएं सुनते हैं और अपनी रहमत नाज़िल करते हैं।
हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फरमाया "अल्लाह तआला 15वीं शाबान की रात को पहले आसमान पर तजल्ली फरमाते हैं और बनी कलब के बकरों के बालों की तादाद के बराबर लोगों को माफ कर देते हैं।"
(तिर्मिज़ी, इब्ने माजा)
नफ्ल नमाज अदा करें, कुरआन की तिलावत करें
इस रात ज्यादा से ज्यादा कुरआन पढ़ना चाहिए।
अस्तग़फार और तौबा करें गुनाहों से तौबा करें और अल्लाह से मग़फिरत मांगे।"अस्तग़फिरुल्लाह" का ज्यादा से ज्यादा विर्द करें। रसूलुल्लाह पर दरूद भेजें, जैसे दरूद-ए-इब्राहीमी या दरूद-ए-पाक। सदका और खैरात करें, गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें, कब्रिस्तान की ज़ियारत करें
अगर मुमकिन हो, तो अपने मरहूम रिश्तेदारों की कब्र पर जाकर उनके लिए दुआ करें। शबे बरात तौबा, इबादत और मगफिरत की रात है। इस रात को अल्लाह से दिल से दुआ करनी चाहिए, कुरआन की तिलावत करनी चाहिए, और ज्यादा से ज्यादा भलाई के काम करने चाहिए।