नए जिले भी सरकार के लिए बने जी का जंजाल❗
@ महेश झालानी
अगर राज्य सरकार द्वारा गहलोत के समय बनाए गए 17 जिलों में से एक भी जिले को समाप्त करती है तो सबसे बड़ी गाज वित्त विभाग पर गिरेगी । यानि अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) अखिल अरोड़ा अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते हैं । गहलोत पर तो कोई कार्रवाई होगी नहीं, लेकिन अरोड़ा पर सारा ठीकरा फूटना लाजिमी है । उस वक्त अखिल अरोड़ा ने कहीं भी यह आपत्ति दर्ज नहीं कराई कि संसाधनों की कमी है । फिर आज संसाधनों की कमी रोना क्यों ❓
भजनलाल की सरकार द्वारा गहलोत द्वारा बनाए गए 17 जिलों को समाप्त करने की समीक्षा के लिए सेवानिवृत्त आईएएस ललित पंवार की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था । पंवार ने सभी जिलों का दौरा कर उनकी भौगोलिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी । मंत्रिमण्डलीय उप समिति को निर्णय करना है कि कौन से जिले समाप्त किये जाएं तथा किनको बरकरार रखने की आवश्यकता है ।
जिले बनाना जितना कठिन कार्य था, उससे दुरूह कार्य उनको समाप्त करना है । अगर वर्तमान सरकार ने एक भी जिले के साथ छेड़छाड़ की तो बीजेपी वाले भी बगावत पर उतारू हो जाएंगे । परिणामतः इसका राजनीतिक खामियाजा बीजेपी को भुगतना लाजिमी है । हालांकि सरकार ने जिलों को समाप्त करने के लिए मंत्रिमण्डलीय उप समिति का गठन कर दिया है । लेकिन हकीकत यह है कि स्वयं उप मुख्यमंत्री प्रेमचन्द बैरवा भी जिलों की समाप्ति के पक्ष में नहीं हैं ।
जिस प्रकार जिलों की समाप्ति की समीक्षा के लिए ललित पंवार कमेटी का गठन किया गया था, उसी प्रकार नए जिलों के गठन हेतु भी तत्कालीन सरकार द्वारा रामलुभाया की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी । रामलुभाया ने सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद ही नए जिलों के गठन की सिफारिश की थी । महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि जिलों के गठन से पहले वित्त विभाग की स्वीकृति आवश्यक होती है । नए जिलों के गठन की स्वीकृति अखिल अरोड़ा ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) की हैसियत से दी थी । अरोड़ा आज भी उसी पद पर कार्यरत हैं । ऐसे में वे पूर्ववर्ती सरकार द्वारा गठित जिलों को भंग करने की स्वीकृति कैसे प्रदान कर सकते हैं ❓
वर्तमान सरकार द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि बहुत ही छोटे जिलों का गठन राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था । बिल्कुल वाजिब तर्क है । हर पार्टी राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सभी हथकंडों का इस्तेमाल करती है । गहलोत ने भी यही हथकंडा अपनाया था । लेकिन बीजेपी सरकार को यह भी देखना होगा कि गुजरात और मध्यप्रदेश में भी राजनीतिक लाभ के लिए निवारी, प्रधुरना और डांग जैसे बहुत छोटे जिलों का गठन किया गया । फिर राजस्थान में जिले के गठन पर उज्र क्यों ?
राज्य सरकार को चाहिए कि वह रामलुभाया द्वारा सौंपी रिपोर्ट का बारीकी से अध्ययन करे । अपनी रिपोर्ट में रामलुभाया ने कोटपूतली व बहरोड़ के बीच तथा खैरथल के निकट औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की सिफारिश की थी । दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद आदि में अब पैर रखने की जगह नहीं बची है । ऐसे में दिल्ली की भीड़ को कम करने और औद्योगिक विकास के लिहाज से खैरथल, बहरोड़ और कोटपूतली में भिवाड़ी की तर्ज पर विस्तृत औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाना चाहिए । एनसीआर (नेशनल केपिटल रीजन) योजना का बुनियादी उद्देश्य भी यही था ।
सरकार को इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि जिलों के गठन से न केवल विकास की गति बढ़ेगी बल्कि रोजगार में भी बहुत ज्यादा इज़ाफ़ा होगा । इसके अलावा जमीनों के भाव बढ़ना लाजिमी है । ऐसे में सरकार को स्टाम्प ड्यूटी से जिलों के गठन के खर्च से ज्यादा आय में इजाफा होगा । विदेशी दौरा करने से निवेश नहीं बढ़ेगा । सरकार को प्रेक्टिकल अप्रोच फार्मूले को अपनाना चाहिए ।