शाहपुरा में साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी में देशभक्ति की रचनाओं से गूंजा जोश

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी अखिल भारतीय साहित्य परिषद शाहपुरा इकाई की मासिक साहित्यिक गोष्ठी रविवार को संघ कार्यालय मधुकर भवन में आयोजित हुई, जिसमें साहित्यकारों और कवियों ने संघ के शताब्दी वर्ष, राष्ट्रधर्म और देशभक्ति को केंद्र में रखकर प्रभावशाली रचनाएँ प्रस्तुत कीं। अध्यक्ष तेजपाल उपाध्याय के संयोजन में हुई गोष्ठी में गद्यदृपद्य दोनों विधाओं में ऐसी प्रस्तुतियाँ सामने आईं, जिनमें राष्ट्रीय चेतना, कर्तव्यबोध और सांस्कृतिक गौरव की भावना प्रखर रूप से दिखाई दी।
राष्ट्रीय चुनौतियों पर सजग रहने का संदेश--
कवियों और वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान समय में देश कई नई चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में समाज को सतर्क रहकर राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि मानना चाहिए। कई रचनाओं में मातृभूमि, बलिदान, शौर्य और भारतीय संस्कृति के मूल्यों का सारगर्भित चित्रण किया गया। वक्ताओं ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है और जब रचनाओं में राष्ट्रभावना मुखर होती है, तो समाज में स्वतः ही जागृति का संचार होता है।
स्कूली शिक्षा में राष्ट्रधर्म जोड़ने पर जोर--
गोष्ठी में यह सुझाव भी प्रमुखता से रखा गया कि स्कूली शिक्षा में राष्ट्रधर्म, राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक इतिहास और कर्तव्यपरायणता जैसे विषयों को और मजबूती से शामिल किया जाए, ताकि नई पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम का भाव बचपन से ही विकसित हो सके। वक्ताओं ने यह भी कहा कि पाठ्यक्रम में देशभक्ति गीतों, काव्य और ऐतिहासिक प्रेरक प्रसंगों को स्थान मिलना जरूरी है।
कवियों और साहित्यकारों ने सुनाईं ओज से भरी रचनाएँ--
गोष्ठी में साहित्यकार जयदेव जोशी, तेजपाल उपाध्याय, डॉ. कमलेश पाराशर, ओमप्रकाश सनाठ्य, एडवोकेट दीपक पारीक, सीए अशोक बोहरा, प्रधानाचार्य धारासिंह मीणा, सेवानिवृत्त शिक्षा अधिकारी विष्णुदत्त शर्मा श्विकलश्, परिषद के सचिव ओम अंगारा, भंवर भड़ाका और प्रधानाचार्य गोविंद सिंह बड़गुर्जर ने अपनी-अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। सभी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, कर्तव्यभाव और सांस्कृतिक चेतना की स्पष्ट झलक दिखाई दी, जिसने उपस्थित श्रोताओं को प्रभावित किया।
राष्ट्रनिर्माण में साहित्य की भूमिका पर विस्तृत विमर्श--
साहित्यकारों ने कहा कि साहित्य हमेशा से समाज को दिशा देने वाला माध्यम रहा है। रचनाओं से न केवल विचारों में परिवर्तन आता है, बल्कि समाज में सकारात्मक चेतना भी पैदा होती है। उन्होंने कहा कि साहित्यिक गोष्ठियों से समाज अधिक संवेदनशील, जागरूक और राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति समर्पित बनता है।
गोष्ठी में भरपूर उत्साह, निरंतर आयोजन का आह्वान-
कार्यक्रम के अंत में सभी साहित्यकारों ने ऐसी राष्ट्रभावना आधारित गोष्ठियों को लगातार आयोजित करने की आवश्यकता जताई। संयोजक तेजपाल उपाध्याय ने सभी रचनाकारों और उपस्थित सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य परिषद आगे भी राष्ट्रप्रेम, संस्कार और सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत करने वाली गतिविधियों को निरंतर जारी रखेगी।
