हमारा बनेड़ा वापस भीलवाड़ा जिले में हुआ शामिल, जन मानस की हुई जीत

बनेड़ा ( केके भण्डारी ) आज का दिन बनेड़ा वासियों के लिए स्वर्णिम दिन से कम नहीं है । आखिर बनेड़ा उपखंड वापस भीलवाड़ा जिले में शामिल हो ही गया।

पूर्ववती कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए नए जिले शाहपुरा में जब से बनेड़ा क्षेत्र को शामिल किया तब से ही यहां की जनता के विरोध के स्वर शुरू हो गए थे । हालांकि बनेड़ा वासियों ने नवगठित शाहपुरा जिले का विरोध नहीं किया बल्कि बनेड़ा क्षेत्र को शाहपुरा में जोड़ा गया इस बात का विरोध था।

बनेड़ा क्षेत्रवासी यही चाह रहे थे कि उनका पूरा क्षेत्र भीलवाड़ा जिले में ही यथावत रहे । यहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं और सक्रिय नागरिकों ने अनेक बार इसके लिए मांग,धरना प्रदर्शन, ज्ञापन आदि सब कुछ किया । आखिर जनमानस की जीत हुई और हमारा बनेड़ा क्षेत्र पुनः भीलवाड़ा जिले में शामिल हुआ ।

राजनीतिक स्वार्थ के चलते गलत हुआ था सीमांकन-

उधर शाहपुरा क्षेत्रवासी की भी कब से मांग थी कि उनका शाहपुरा जिला बने और पूर्ववर्ती सरकार ने जिला बना भी दिया लेकिन नेताओं के राजनीतिक स्वार्थ और राजनीतिक द्वेषता के चलते शाहपुरा जिले का सीमांकन सही ढंग से नहीं किया गया जिन क्षेत्रों को शाहपुरा जिले में जोड़ना था उनको नहीं जोड़ा और जिनको नहीं जोड़ना था उनको शाहपुरा जिले में जोड़ दिया सिर्फ अपनी अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण के लिए ।

जनमानस का विरोध भी खुलकर नजर आया । लोगों ने धरना प्रदर्शन किया । उन नेताओं के पुतले फूंके और लगातार विरोध प्रकट किया ।

वर्तमान राज्य सरकार ने पूर्व वर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों के लिए पुनः समीक्षा की । कमेटी और समिति गठित कर सर्वे रिपोर्ट बनाई गई जिसमें नए जिलों के तय मापदंड के आधार पर सर्वे किया गया । जनता की राय ली गई और इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने फैसला लिया ।

वही इस फैसले की जानकारी मिलते ही बनेड़ा वासियों में खुशी की लहर दौड़ गई और युवा वर्ग खुशियां मनाने की तैयारी में लग गए हैं ।

वही बनेड़ा क्षेत्र की समस्त जनता का कहना है कि अगर कोई भी नेता या राजनीति से जुड़ा हुआ व्यक्ति जन मानस की भावनाओं की कदर नहीं करेगा तो उसका बेड़ा गर्त में ही जाएगा ।

बनेड़ा वासियों ने राज्य सरकार के आज के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि आखिर हमारा बनेड़ा क्षेत्र वापस भीलवाड़ा जिले में शामिल हो गया । यह हम आम जनमानस की जीत है और स्वार्थी नेताओं की दूसरी बार हार हैं।

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