ऐसी दुर्दशा तो बनेड़ा की पहले कभी नहीं थी

ऐसी दुर्दशा तो बनेड़ा की पहले कभी नहीं थी
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बनेड़ा ( केके भण्डारी ) बनेड़ा से निकलने वाले स्टेट हाईवे 12 (शाहपुरा-भीलवाड़ा बाईपास) पर चोर घाटी और डाक बंगले के आसपास सड़क किनारे मृत पशु मवेशी डालने से राहगीरों का निकलना बड़ा ही मुश्किल हो रहा हैं। स्टेट हाईवे होने से यहां से निरंतर वाहनों की आवाजाही होती हैं । बनेड़ा और आसपास के क्षेत्र की जनता भी दुपहिया और तिपहिया, चौपहिया, बस आदि अनेक वाहनों में नियमित यहां से गुजरती हैं ।

बनेड़ा कस्बे के लोग भी सुबह शाम वाकिंग और जोगिंग के लिए इसी मार्ग से गुजरते हैं लेकिन सड़क किनारे कई दिनों से पड़े मृत मवेशियों के कारण भयंकर दुर्गंध से यहां से निकलना मुश्किल हो रहा हैं और साथ ही बीमारियां फैलने का भी अंदेशा बना हुआ हैं । और तो और बिल्कुल पास में ही भेरुनाथ जी का स्थान भी बना हुआ है जहां पर मन्नत पूरी होने के बाद लोग धोक लगाने पहुंचते हैं बावजूद इसके जिम्मेदारों की आंखें अभी तक नहीं खुली ।

ग्राम पंचायत बनेड़ा द्वारा पहले से ही मृत मवेशियों को डालने के लिए सरकारी राशि से डाक बंगले के सामने जेसीबी से खड्डा खुदवा कर स्थान निश्चित किया था, लेकिन फिर भी यहां सड़क किनारे मृत मवेशी पड़े हुए और उनको आवारा कुत्ते नौंचते हुए यहां मिल जाएंगे ।

काफी समय से सड़क किनारे मृत मवेशी डाले जा रहे हैं लेकिन जिम्मेदारों की नींद अभी तक नहीं उड़ी, इससे शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है ?

जो कभी आदर्श ग्राम पंचायत कहलाने वाली पंचायत का यह बदहाल होगा किसी ने सोचा भी नहीं था । यहां की दुर्दशा के ये हाल है कि मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों को भटकना पड़ता है आए दिन कभी रोड लाइट बंद होती है तो कभी खराब होती है, गंदा पानी मुख्य सड़कों पर बहता रहता है, हर कहीं गंदगी दिखाई पड़ती है । सार्वजनिक शौचालय के हाल तो और भी बेहाल है लेकिन यहां के जिम्मेदारों को कोई भी परवाह नहीं है । जबकि साफ सफाई, विद्युत-रोशनी व्यवस्था आदि के नाम पर बराबर सरकारी राशि उठाई जा रही है । आम जनता सब जानती है की ये राशि कैसे उठाई जाती है और कहां जाती है !

जल जीवन योजना के अंतर्गत सरकार लाखों रुपए दे रही है फिर भी आए दिन पेयजल व्यवस्था पूरी तरह से गड़बड़ाती रहती है, लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं यहां ।

सिर्फ बड़े नेताओं के द्वारा की गई घोषणाओं के ऊपर खुद की झूठी वाही वाही लूटने को तैयार रहते हैं और साफा-माला पहनने में आगे रहते हैं । बड़े नेताओं के सामने अपने आप को विकास पुरुष बताने में भी पीछे नहीं रहेंगे ।

ये जिम्मेदार इस बात को भूल जाते हैं की जनता चुनाव में जितवाकर ऊपर बैठा सकती है तो हरवा कर वापस नीचे भी पटक सकती है । हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं ।

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