सिहर रही गेरुई ज्वाला

सिहर रही गेरुई ज्वाला
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कोहरे ने राहों पर हमला बोला

दिवस रात्रि का रुका हिंडोला 

ठिठके सभी बाहर निकलना तज

क्या आदमी क्या चांद क्या सूरज

सबका ही हिम्मत डोला 

 

छिड़ी लड़ाई मनुष्य प्रकृति में

जीवन युद्ध की कठिन प्रवृत्ति में

मानव दंभ में बहक रहा है

वसुधा का सीना दहक रहा है

शीतवायु ने ताकत तोला

 

दांतो से कट-कट दांत टकराए 

खुली आंखों में बादल छाए

महाबली मानव घुटनों पर आया

दिख रही कांपती थर-थर काया

कैलाश पर्वत ने बर्फ उड़ेला 

 

होश उड़े पर वायुयान उड़े नहीं

बोगियां खड़ीं इंजन जुड़े नहीं

चुप समुद्र देख रहा प्रलय

श्वेताग्नि बरसा रहा मलय

सिहर रही गेरुई ज्वाला

 

डॉ एम डी सिंह

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