घर घर में दीप जलाए ,घर घर में खुशियां लाए ।लाओ गुड़लिया का धान कहते बच्चे

By :  vijay
Update: 2024-10-27 11:34 GMT

 आकोला (रमेश चंद्र डाड) गांवों में दीपावली आने की खुशी में बच्चे झुम उठते हैं। दीपावली की खुशियां मनाने के लिए निर्धन परिवारों के बच्चे घर घर जाकर गुड़लिया गीत गाकर दीपावली की खुशी मनाने की खर्ची एकत्रित करते थे।पुराने जमाने में गांवों में बच्चों को गुडलिया गीत गाने पर घरों से धान देते थे। क्योंकि दीपावली तक खेतों से फसलें कट कर अनाज घरों में आ जाता था। पैसों की कमी रहती थी।जिससे बच्चों को ग्रामीण थोडा़ थोड़ा धान देते थे।उस धान यानि अनाज को बेचकर बच्चे दीपावली के खर्ची के पैसे एकत्रित करते थे।गुड़लिया गीत के माध्यम से निर्धन परिवारों के बच्चे अपनी दीपावली की खुशी इस तरह मनाते थे। दीपावली की खुशी में निर्धन बच्चों के लिए इस तरह सभी की सहयोग भावना रहती थी।पुरानी परम्परा आज भी गांवों में जीवित है।

गुडलिया गीत के माध्यम से दीपावली की घर घर दीप जलाने एवं घर घर खुशियां मनाने की बच्चे कहते थे।उन ही परम्पराओं का आज भी गांवों में बच्चे निर्वहन कर दीपावली की खुशियां मनाने हेतु गुड़लिया गीत गाते दिखाई देते हैं। बाजार, मोहल्लो में जाकर गुड़लिया गीत गा कर दीपावली आगमन की सूचना देते हैं।खुशियां प्रकट करते है। परम्परागत तरीके से बच्चे, बच्चियां सीर पर मटकी , मटकी मे जलता हुआ दीपक रख कर गली मोहल्लों में संध्या बाद रात को निकलते हैं। मारवाड़ी, राजस्थानी भाषा में गीत गाकर दीपावली की सूचना देते तथा गुड़लिया गीत से मनोरंजन करते हैं। लाओ गुड़लिया का धान मांगते हैं।बच्चों के गीत की लय बड़े चाव से लोग सुनते हैं।तथा बच्चों को मिठाई के रूपये,पैसें एवं अनाज देते हैं।यह प्राचीन चली आ रही गुड़लिया गीत गाने की परम्परा को आज की पीढ़ी के बच्चों ने भी जीवन्त रूप दे रखा है। भारतीय संस्कृति को जीवन्त रखना है तो ऐसी प्राचीन परम्पराओं को सब जगह चलाते रहना जरूरी है।आने वाली पीढ़ी को जानकारी के लिए परम्पराओं का निर्वाह जरूरी है। दीपावली की सूचना देने के लिए एक महिने पहले ही गावौ में घरों पर साफ सफाई शुरू हो जाती है। कुम्हार मिट्टी के दीपक बनाकर दीपावली पर बेचने के लिए तैयार कर लेते हैं।

दीपक जलाने के लिए बाट यानि दीपक की रूई गांवों में जुलाह- पिनारा घर घर जाकर देते थे। जिनको भी धान देते थे।

Similar News