अमृत-2 योजना में निजी कॉलोनियों, पैराफेरी के गाँवों सहित सभी क्षेत्रों को मिले जल
भीलवाड़ा। भीलवाड़ा विधायक अशोक कुमार कोठारी ने विधानसभा में राज्य में पेयजल की स्थिति पर बोलते हुए इस बात पर चिंता जताई कि हर साल बारिश और अन्य स्रोतों से जितना पानी रिचार्ज होता है उससे वर्तमान में 149% ज्यादा पानी इस्तेमाल हो रहा है, यानी भविष्य की बचत को आज ही खर्च किया जा रहा है , यह विचारणीय बिंदु है। भीलवाडा में एक समय जल आपूर्ति ट्रेन के माध्यम से होती थी आज वही जल आपूर्ति चम्बल के माध्यम से हो रही है, लेकिन भविष्य हेतु यह भी पर्याप्त नहीं है।
कोठारी ने कहा की मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भीलवाड़ा के पानी की समस्या के स्थाई समाधान के लिए बजट में माही बेसिन की जाखम नदी एवं बाँध के अधिशेष जल को फीडर के माध्यम से चित्तौड़गढ़ और भीलवाडा के बांधों को भरने संबंधी कार्य हेतु 7 हज़ार 100 करोड़ रुपये की परियोजना को स्वीकृत किया है। जिससे भविष्य में भीलवाड़ा में पेयजल सुविधा व लगभग 70 हज़ार हेक्टेयर सिंचित भूमि को इससे फ़ायदा मिलेगा। चूंकि भीलवाडा में डार्क जोन के कारण नये उद्योग स्थापित नहीं हो पा रहे है अतः यहाँ के औद्योगिक विकास के लिए ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट से जोड़ा जाना चाहिए।
कोठारी ने कहा की पूर्व में जहाँ निजी कॉलोनियों को जल आपूर्ति -अमृत योजना में नहीं हो पा रही थी वहीं अमृत-2 परियोजना अंतर्गत निजी कॉलोनियों में जल आपूर्ति हेतु वर्ष 2023 में बजट राशि 131.54 करोड़ के साथ शुरू हुई थी, पर एक वर्ष से अधिक व्यतित हो जाने के उपरांत भी अमृत-2 योजना की डीपीआर नहीं बनी है। उक्त परियोजना की लागत बढ़ने के कारण सरकार द्वारा परियोजना की लागत को बढ़ाया जाना चाहिए। अमृत-2 में सभी निजी कॉलोनियो को योजनान्तर्गत शामिल किया गया है, लेकिन इसको नगरीय सीमा से बढ़ाकर पेराफेरी क्षेत्र तक किया जाये ताकि सभी को पेयजल उपलब्ध हो सके।
विधायक कोठारी ने कहा की सरकार को रेनवाटर हार्वेस्टिंग को सम्पूर्ण राजस्थान में कड़ाई से लागू करवाना चाहिये। एसटीपी प्लांट उद्योगों की ज़रूरतों को पूरा करने का एक अच्छा माध्यम है। जिसमें गंदे पानी का शोधन कर उन्हें उपयोग में लिया जा सकता है। सभी नदी, तालाबों और झीलों और झं को संरक्षण योजना के अंतर्गत लाना चाहिए ताकि कहीं भी कोई भी किसी भी जल स्त्रोतो को सीवरेज के नालो, फैक्ट्रियो की गंदगी के द्वारा दूषित या प्रदूषित नहीं कर सके और प्रदूषण करने वाले व्यक्ति पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही सरकार द्वारा की जाये और सभी निकायों और स्वायत्तशासी संस्था को उनके क्षेत्राधिकार में आने वाले जल स्त्रोतों का विशेष ध्यान रखने को निर्देशित किया जाए और प्रदूषण होने पर अधिकारियों की व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी तय की जाए।