जीवन निर्माण के लिए संस्कारवान होना आवश्यक है: धैर्य मुनि

By :  vijay
Update: 2025-07-13 15:14 GMT
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आसींद ( सुरेन्द्र संचेती) वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कारों का अभाव हो रहा है, जिसके कारण चारों और समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। संस्कार तीन तरह से प्राप्त होते है पहला गर्भ में, दूसरा खून में, तीसरा संगति से संस्कार प्राप्त होते है। संस्कारित मित्रो से दोस्ती होने पर अच्छे संस्कार बच्चों में आना शुरू हो जाते है। माता और पिता को भी बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए आज के युग में माता - पिता आपा धापी की इस जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाते है कि वो अपने बच्चों की तरफ पूरा ध्यान भी नहीं दे पाते है। बच्चा कहा पर जा रहा है, क्या कर रहा है, किसके साथ उसका उठना बैठना है इस पर उनका कोई फोकस नहीं है। जब बच्चा सारी हदें पार कर देता है तब माता पिता की नीद खुलती है। घर में आते ही परिवार के सभी सदस्य अपने अपने कमरे में मोबाइल लेकर बैठ जाते है। मोबाइल में कौन क्या कर रहा है, क्या देख रहा है सब अपने अपने मोबाइल में व्यस्त है। उक्त विचार नवदीक्षित धैर्य मुनि ने महावीर भवन के प्रवचन हाल में धर्मसभा में व्यक्त किए।

मुनि ने धर्म सभा में कहा कि व्यक्ति को आज शुद्ध आहार नहीं मिल पा रहा है। जो आहार मिल रहा है वह केमिकल और पेस्टीसाइड्स से युक्त है जिसके कारण कैंसर सहित अन्य रोग तेजी के साथ फैल रहे है। भगवान महावीर स्वामी ने आज से 2600 वर्ष पूर्व ही बता दिया कि शरीर के लिए कौनसा आहार उपयुक्त है कौनसा नहीं है। व्यक्ति को जहां तक संभव हो सके शुद्ध आहार पर फोकस करना चाहिए ताकि शरीर स्वस्थ रहे। जैसा हम अन्न खायेंगे वैसा हमारा मन रहेगा। हम सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करे। आसींद संघ बड़ा ही भाग्यशाली है जहां पर पिछले 228 सप्ताह से हर रविवार को नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप हो रहा है। नवकार महामंत्र में चौदह पूर्व का सार है। दुनिया में इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं है। श्रद्धा पूर्वक इसके जपने से पापों का नाश हो जाता है एवं परिवार में सुख शांति समृद्धि बनी रहती है।

प्रवर्तिनी डॉ दर्शनलता ने धर्म सभा में तप और त्याग का महत्व बताते हुए अधिक से अधिक धर्म की साधना करने पर जोर दिया। साध्वी ऋजु लता ने कहा कि जो आत्मा महापुरुषों के बताए हुए मार्ग पर चलती है वह आत्मा वीर कहलाती है। सभी श्रावक श्राविकाएं जीवन में सरलता के भाव रखे ,क्रोध से सदेव दूरी बनाए रखे और सज्जनता के मार्ग पर आगे बढ़ते रहे। धर्मसभा में सैकड़ों श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।

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