सावन के पहले सोमवार को हुआ भोलेनाथ का अभिषेक व श्रृंगार

By :  vijay
Update: 2025-07-14 10:21 GMT
सावन के पहले सोमवार को हुआ भोलेनाथ का अभिषेक व श्रृंगार
  • whatsapp icon

भीलवाड़ा । श्री रामधाम रामायण मंडल ट्रस्ट की ओर से हमीरगढ़ रोड स्थित रामधाम में चल रहे भव्य चातुर्मास महोत्सव के अंतर्गत केदारखंड से आए स्वामी अच्युतानंद महाराज अपने दिव्य प्रवचनों से श्रोताओं को जीवन के गूढ़ रहस्यों से परिचित करा रहे हैं। उनके प्रवचनों की विशेषता यह है कि वे रामचरितमानस के गूढ़ सिद्धांतों को आज के मानव जीवन के परिप्रेक्ष्य में सरल और सहज सूत्रों के माध्यम से समझा रहे हैं।

स्वामी जी ने अपने सोमवार के प्रवचन में विशेष रूप से “राम” को धर्म का मूर्तिमान स्वरूप बताते हुए कहा कि जीवन में राम के आने का अर्थ है – जीवन का धर्ममय हो जाना। धर्म केवल किसी कर्मकांड का नाम नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की वह पवित्र कला है, जिसमें करुणा, दया और परोपकार निहित हैं। उन्होंने कहा कि धर्म का मूल दया है। दया से ही धर्म पुष्ट होता है और दया शील व्यक्ति अपने जीवन में कभी दुखी नहीं हो सकता।

स्वामी जी ने श्रोताओं को यह भी समझाया कि संसार के सारे दुखों का मूल कारण हमारा बाहरी परिस्थितियों में उलझ जाना है। सुख और दुख जीवन के स्वाभाविक उतार-चढ़ाव हैं, किंतु उनका प्रभाव केवल उन्हीं पर पड़ता है जो अपने स्वरूप को नहीं जानते। उन्होंने कहा – “मानव जीवन का परम लक्ष्य है कि हम इन द्वंद्वों से ऊपर उठकर अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हों। जब हम अपने भीतर छिपे दिव्यता के स्रोत को पहचान लेते हैं, तब बाहरी परिस्थितियाँ हमें विचलित नहीं कर पातीं।”

रामचरितमानस के प्रसंगों को उद्धृत करते हुए उन्होंने बताया कि श्रीराम ने अपने जीवन में हर कठिनाई का सामना करते हुए भी धर्म के मार्ग को नहीं छोड़ा। यह हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हमें करुणा, क्षमा और धैर्य का दामन थामे रखना चाहिए। यही जीवन का असली धर्म है।

स्वामी जी ने सरल शब्दों में समझाया कि धर्म कोई जटिल सिद्धांत नहीं बल्कि आचरण की सहजता है – “जो दूसरों के प्रति दयालु है, जो सत्य का पालन करता है और जो अपने कर्तव्यों को निष्ठा से निभाता है, वही वास्तव में धर्मात्मा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि जब हमारा जीवन धर्ममय होता है, तब उसमें स्वाभाविक रूप से शांति और आनंद का वास होता है। ऐसे व्यक्ति को न तो सफलता का गर्व होता है और न ही असफलता का दुख। वह साक्षी भाव में रहते हुए अपने जीवन को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है।

अंत में स्वामी जी ने श्रोताओं को प्रेरित करते हुए कहा कि श्रावण मास का यह पावन अवसर हमें अपनी आत्मा की ओर लौटने का आह्वान कर रहा है। उन्होंने सभी भक्तों से आग्रह किया कि वे रामचरितमानस के गूढ़ संदेशों को अपने जीवन में उतारें और अपने परिवार तथा समाज को धर्म और करुणा का केंद्र बनाएं। ट्रस्ट के सचिव अभिषेक अग्रवाल ने बताया कि सावन के पहले सोमवार को रामधाम के शिवालय में भोलेनाथ का अभिषेक व श्रृंगार किया गया। प्रवचन रोज सुबह 9 बजे हो रहे है। 

Tags:    

Similar News