बारह कक्षाएं, पांच अध्यापिकाएं : चार-चार कक्षाओं को एक साथ पढाने को मजबूर, कैसी होगी गुणवत्ता वाली पढाई
भीलवाड़ा (राजकुमार माली) । झालावाड़ में विद्यालय भवन ढहने से हुई सात छात्राओं की मौत के बाद भीलवाड़ा में कई जर्जर स्कूलों के मामले सामने आ रहे है। इसी के साथ स्कूलों की अन्य कमियां भी उजागर हो रही है। डबल ईजन सरकार शिक्षा को बढावा देने के बड़े बड़े दावे कर रही है लेकिन स्कूलों की हालत इतनी खराब है कि वहां चार चार कक्षाओं को एक-एक अध्यापिका पढाने को मजबूर है और कुछ को तो एक अध्यापिका ही चला रही है। ऐसे में कैसे तो शिक्षा में गुणवत्ता आएगी, इस पर प्रश्नचिन्ह लगता नजर आ रहा है।
झालावाड़ में हुई दर्दनाक घटना के बाद भीलवाड़ा में भी लोगों में जागरूकता आई है और शहर से लेकर गांव तक के लोगों ने भीलवाड़ा हलचल को विद्यालयों की समस्याएं बताई है। ऐसी ही एक समस्या को लेकर जब हलचल की टीम जब राजकीय उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय भोपालगंज (जवाहर नगर) पहुंची तो वहां विद्यालय तो जर्जर हालत में था ही लेकिन एक पारी में चलने वाली इस स्कूल की बारह कक्षाओं को चार-चार कक्षाओं को शामिल एक अध्यापिका पर पढ़ाने की जिम्मेदारी दी हुई है। इस संबंध में जब विद्यालय की कार्यवाहक प्रधानाचार्य सीमा श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने कहा कि मेरे सहित विद्यालय में कुल पांच अध्यापिकाएं है जिनमें सीनियर मात्र एक अध्यापिका है। पहली से बारहवीं तक बारह कक्षाओं को मात्र पांच अध्यापिकाएं पढा रही है। इनमें से दो को तो लगातार सूचनाएं देने के लिए कम्प्यूटर पर लगाना पड़ता है। ऐसे में तीन अध्यापिकाएं चार चार कक्षाओं को एक साथ पढा रही है। यह पूछने पर कि कितने पद स्वीकृत है तो उन्होंने बताया कि तेरह अध्यापिकाओं के पद यहां स्वीकृत है लेकिन लम्बे समय से चार और पांच अध्यापिकाएं ही यहां कार्यरत है। ऐसे में पढाई भी पूरी तरह संभव नहीं है।
इसी तरह लेकर कॉलोनी प्राथमिक विद्यालय में पांचवीं तक के छात्रों को पढाने के लिए विद्यालय की सर्वे सर्वा एकमात्र अध्यापिका है जिसे स्कूल की व्यवस्था भी देखनी है और पढाई भी करवानी है। स्कूल आने और जाने तक पांचों कक्षाओं को पढाने का जिम्मा है। यह तो शहर के हालात है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो इससे भी हालत खराब है।
सरकार एक ओर तो शिक्षा को बढावा देने के बड़े बड़े दावे कर रहे है। लेकिन विद्यालयों में पर्याप्त टीचर भी नहीं लगा पा रही है जिससे छात्रों की मनोदशा भी ठीक नहीं रह पाती और पढाई भी गुणवत्ता वाली नहीं हो पाती। ऐसे में कई बार छात्र छात्राएं निजी स्कूल की ओर रूख करते है।