आरबीआई ने राज्यों की ओर से सब्सिडी खर्च बढ़ाए जाने पर जताई चिंता, दी यह सलाह
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गुरुवार को सब्सिडी पर राज्यों की ओर से बढ़ते खर्च पर चिंता जताई और इस तरह के खर्चों को तर्कसंगत बनाने का आह्वान किया। केंद्रीय बैंक ने 'राज्य वित्त: 2024-25 के बजट का अध्ययन' रिपोर्ट में कहा कि राज्यों को अपने सब्सिडी खर्चों को नियंत्रित और तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि इस तरह के खर्च से अधिक उत्पादक व्यय प्रभावित न हों।
राज्यों की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी में कृषि ऋण माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाएं (जैसे कृषि और घरों को बिजली, परिवहन, गैस सिलेंडर) और किसानों, युवाओं और महिलाओं को नकद हस्तांतरण शामिल हैं। सब्सिडी, जिसे कभी-कभी राजनीतिक चर्चा में मुफ्त उपहार कहा जाता है, का राजनीतिक दल, विशेष रूप से चुनावों से पहले जीत हासिल करने के लिए सहारा लेते हैं।
कई राज्यों ने कृषि ऋण माफी, कृषि और घरों को मुफ्त बिजली, लोगों के एक वर्ग को मुफ्त परिवहन, बेरोजगार युवाओं को भत्ते और महिलाओं को मौद्रिक सहायता से संबंधित रियायतों की घोषणा की है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, "इस तरह के खर्च से उनके पास उपलब्ध संसाधन खत्म हो सकते हैं और महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की उनकी क्षमता बाधित हो सकती है। उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात, बकाया गारंटी और बढ़ते सब्सिडी बोझ के कारण राज्यों को विकास और पूंजीगत खर्च पर अधिक जोर देते हुए राजकोषीय समेकन पर टिके रहने आवश्यकता है।"
आरबीआई ने तर्क दिया कि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने के लिए संसाधनों को मुक्त करने के लिए सब्सिडी पर व्यय की तत्काल समीक्षा की आवश्यकता है, जिससे अधिक नौकरियां पैदा करने और स्थायी आधार पर गरीबी को कम करने में मदद मिलेगी। आरबीआई ने कहा कि बढ़ते सब्सिडी बोझ से नए दबाव उभर रहे हैं, ऐसे में राज्यों की ओर से राजकोषीय समेकन को मजबूत करने की जरूरत है।
आरबीआई ने कहा कि राज्य सरकारों ने लगातार तीन वर्षों (2021-22 से 2023-24) के लिए अपने सकल राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3 प्रतिशत के भीतर रखने और 2022-23 और 2023-24 में राजस्व घाटे को जीडीपी के 0.2 प्रतिशत तक सीमित करके राजकोषीय समेकन की दिशा में सराहनीय प्रगति की है। आरबीआई ने कहा कि इससे राज्यों को अपने पूंजीगत व्यय को बढ़ाने और व्यय की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिली है।
2000 के दशक की शुरुआत में राज्य सरकारों की ओर से राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून (एफआरएल) को अपनाने से उनके प्रमुख राजकोषीय मापदंडों में सुधार हुआ। इसके साथ ही, राज्यों का कुल ऋण मार्च 2004 के अंत में जीडीपी के 31.8 प्रतिशत से घटकर मार्च 2024 के अंत में जीडीपी का 28.5 प्रतिशत हो गया। हालांकि, यह राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) समीक्षा समिति (2017) की ओर से अनुशंसित 20 प्रतिशत के स्तर से यह अब भी काफी ऊपर है।
आरबीआई की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने से राज्यों को अपनी कर प्रणाली को और बेहतर बनाने और कर क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है। रिपोर्ट में यह भी सलाह दी गई कि राज्य विशेष रूप से बिजली, पानी और परिवहन सेवाओं के लिए लिए जाने वाले शुल्क में समय पर संशोधन करके गैर-कर राजस्व भी बढ़ा सकते हैं।