आप भी रोज पीते हैं चाय तो जरूर पढ़े ये खबर, कहीं ऐसी गलती आपमें बढ़ा न दे कैंसर का खतरा
अगर आप भी दिन में चार से पांच कप तक चाय पी जाते हैं तो यकीन मानिए ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं हैं। भारत सहित दुनिया के कई देशों में चाय सबसे पसंदीदा पेय रही है। चाय पीना आपके लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक, ये लंबे समय से चर्चा का विषय बना हुआ है। वैज्ञानिकों का इसको लेकर अलग-अलग मत है, ज्यादातर शोध के निष्कर्ष बताते हैं, अगर आप पारंपरिक भारतीय चाय की जगह बिना दूध और चीनी वाली चाय पीते हैं तो निश्चित ही इससे कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। हालांकि अगर आप टी-बैग वाली चाय पीते हैं तो सावधान हो जाइए, अध्ययनों में इसे स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सेहत के लिए नुकसानदायक बताया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, टी-बैग से चाय बनाने की प्रक्रिया में हमारे शरीर में जाने-अनजाने लाखों-करोड़ों माइक्रोप्लास्टिक प्रवेश कर जाते हैं, जिसके दीर्घकालिक रूप से कई गंभीर नुकसान यहां तक कि कैंसर तक का खतरा हो सकता है।
विशेषकर प्लास्टिक युक्त टी-बैग से बनी चाय के हर घूंट में अरबों माइक्रो और नैनोप्लास्टिक हो सकते हैं। इससे पहले के भी कई अध्ययनों में स्वास्थ्य विशेषज्ञ माइक्रोप्लास्टिक के कारण होने वाले गंभीर स्वास्थ्य दुष्प्रभावों को लेकर चिंता जताते रहे हैं।
टी-बैग से रिलीज होते हैं अरबों नैनो प्लास्टिक के कण
जर्नल केमोस्फियर में इस अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। ऑटोनोमस यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना (यूएबी) के शोधकर्ताओं ने अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर बताया है कि टी-बैग (प्लास्टिक युक्त) को जब हम गर्म पानी में डालते हैं तो इससे अरबों की संख्या में प्लास्टिक के नैनो कण निकलते हैं जो हमारे शरीर की कोशिकाओं में अवशोषित हो जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर चिंता के रूप में उभरती समस्या है। कई अध्ययनों से पता चला है कि इससे एंडोक्राइन डिसरप्टर्स नामक रसायन रिलीज होते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये मानव हार्मोन को बाधित करते हैं और कुछ कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक से मानव स्वास्थ्य पर असर
यूएबी में माइक्रोबायोलॉजिस्टकी एक टीम ने तीन अलग-अलग टी-बैग से निकलने वाले माइक्रोप्लास्टिक और इससे मानव कोशिकाओं पर होने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन किया।
अध्ययन के लेखकों में से एक, रिकार्डो मार्कोस डॉडर ने बताया कि जब हम माइक्रोप्लास्टिक्स के बारे में बात करते हैं, तो इसका मतलब केवल उस प्लास्टिक से नहीं होता है जो विघटित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं, बल्कि प्लास्टिक के ऐसे टुकड़ों से होता है जिन्हें आसानी से माइक्रोमीटर में मापा जा सकता है।
शरीर में पहुंच रहे हैं कई बिलियन प्लास्टिक के कण
इस अध्ययन में विशेष रूप से नैनोप्लास्टिक्स को देखा गया, जिसका माप 1 से 1000 नैनोमीटर के बीच था। प्रोफेसर डॉडर ने कहा, डेटा से पता चलता है कि प्लास्टिक के कणों का आकार जितना छोटा होगा, कोशिकाओं में प्लास्टिक का अवशोषण उतना ही अधिक होगा। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्लास्टिक के कणों की आकार जितना छोटा होगा, इससे हमारी सेहत को जोखिम उतना ही अधिक होगा।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट की टीम ने पाया कि बाजार में आसानी से उपलब्ध टी-बैग से चाय बनाते समय भारी मात्रा में प्लास्टिक के कण गर्म पानी में मिल जाते हैं। अध्ययन के लिए तीन प्रकार के प्लास्टिक युक्त बैग्स (पॉलीप्रोपिलीन, नायलॉन-6 और सेल्यूलोज) का इस्तेमाल किया गया।
पॉलीप्रोपाइलीन युक्त टी-बैग की प्रति बूंद या मिलीलीटर चाय में लगभग 1.2 बिलियन (120 करोड़) प्लास्टिक के सूक्ष्म कण निकलते हैं। सेल्यूलोज युक्त थैलियों से प्रति बूंद से 13.5 करोड़ और नायलॉन-6 से प्रति बूंद 81.8 लाख प्लास्टिक के सूक्ष्म और अति सूक्ष्म कण निकलते हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
इस तरह की चाय पीने के बाद इंसानों के शरीर पर किए गए अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया है कि 24 घंटे के भीतर आंतों में बलगम बनाने वाली एक विशिष्ट प्रकार की पाचन कोशिका ने काफी मात्रा में सूक्ष्म और नैनोप्लास्टिक को अवशोषित कर लिया था। समय के साथ ये कण रक्तप्रवाह और शरीर के अन्य भागों में ले पहुंचने लगते हैं। दीर्घकालिक रूप से ये सूक्ष्मकण हार्मोनल विकार और कैंसर जैसी गंभीर और जानलेवा समस्याओं का कारण बन सकते हैं।